Thursday 29 December 2016

समाधि मंदिर: जहां दु:ख भी सुखों में बदल जाते हैं



बाबा अन्तर्यामी थे उन्हें पल-पल के भविष्य की खबर रहती थी वे देखते थे कि उनके इर्द-गिर्द मौजूद लोग उनके संग रहकर कितने खुश हैं उन्हें यह भी लगता होगा कि जब वो यह नश्वर शरीर त्यागेंगेतब उनके भक्तों पर क्या बीतेगीलोग मायूस हो जाएंगे बाबा को इसीलिए तभी शिर्डी में वाड़ा बनवाने का विचार आया एक ऐसा स्थलजो उनके ‘ब्रहमांड में अंतरध्यान’ होने के बाद भी लोगों की सोच को सकारात्मक बनाए रखे बुराइयों और बीमारियों से लड़ने के लिए उनका हौसला बरकरार रखे



आज शिर्डी स्थित बाबा की समाधि पर दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं कुछ दु:खी होते हैंतो कई अपना सुख बाबा से साझा करने आते हैं जो किसी परेशानी या बीमारी से पीड़ित होते हैंजब वे वापस शिर्डी से लौटते हैंतो उनके अंदर एक नई ऊर्जा-शक्ति का संचार हो जाता है

इसी को ध्यान में रखते हुए एक दिन बाबा ने एक साथ दो लोगों को स्वप्न में आकर शिर्डी में एक वाड़े के निर्माण की प्रेरणा दी बाबा नागपुर शहर के अपने भक्त बापूसाहेब बूटी उर्फ मुकुंद राव बूटी के स्वप्न में इसलिए आएक्योंकि वे पैसों से सक्षम और समृद्ध थे बाबा चाहते थे कि उनके जीवन से जुड़ा हर व्यक्ति अपने तन-मन-धन का सदुपयोग करे लोगों की भलाई के बारे में सोचेजो लोग अपनी किसी सफलता या अच्छाई से पैदा हुई खुशी बाबा से साझा करते हैंतब उन्हें एक नई सीख मिलती है कि अगर ईश्वर ने आपको सुख-समृद्ध बनाया हैतो उसका सदुपयोग जरूरतमंदों के हित में करें गरीब-मजबूर लोगों के दु: दूर करेंगेसुख बांटेंगेतो ईश्वर स्वतप्रसन्न होगा। बापूसाहेब बूटी भी ऐसे ही एक परोपकारी व्यक्ति थे।

बाबा ने बापूसाहेब बूटी के साथ शामा को भी यही स्वप्न दिया दरअसलहर इंसान का अपना एक वजूद होता हैकार्य करने की क्षमता होती है किसी के पास पैसा होता हैतो शारीरिक तौर पर कार्य करने की क्षमता रखता है शामा बाबा की सेवा में लगा रहता था और साथ ही में उसे बाबा के प्रति मित्रवत भाव भी था उसके जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य रहता था कि बाबा उसे जो आदेश देंउसे पूरी शिद्दत से पूरा करना उसके लिए जीवन में यही पुण्य कमाने का एक बेहतर जरिया था

शामा को भी यह स्वप्न हुआ कि यहां एक वाड़े का निर्माण कराओ बाबा ने स्वप्न में उससे कहा- मैं यहां से अपने समस्त भक्तों की इच्छाएं पूरी करुंगा हम यहां पर सभी साथ रहेंगेखूब मिलेंगेखूब नाचेंगेखूब आनंद करेंगे

बाबा को अपने स्वप्न में पाकर शामा विचलित हो उठा भावविभोरता में उसकी आंखें भर आईं वो तो हमेशा इसी प्रयास में लगा रहता कि बाबा कोई तो उसे आदेश दें कुछ ऐसा करने को देंजो उसके जीवन को सफल बना दे। लेकिन बाबा ने ऐसा आदेश क्यों दिया?

दोनों, शामा और बापूसाहेब बूटी, अच्छे से जानते थे कि बाबा निरुद्देश्य कोई आदेश-निर्देश नहीं देते उनके शब्दों में गूढ़ रहस्य छुपे होते हैंजिनका अंदाजा सिर्फ भविष्य में पता चलता है। उनकी कोई भी, किसी भी स्वरुप में की हुई बात कभी भी थोथी-पोची नहीं होती। गुत्थी को सुलझाने के लिए शामा और बापू साहब ने बाबा से इस स्वप्न का जिक्र किया बाबा मुस्करा दिए दोनों ने बाबा से वाड़े के निर्माण की अज्ञा मांगी बाबा ने एक दिन शामा को नारियल दिया कोई मुहूर्त्त और चौघड़िया नहीं। शुभ संकल्प में सभी गृह-नक्षत्र ठीक हो जाते हैं। खुशी-खुशी उस जगह पर वाड़े का भूमिपूजन कियाजहां पर बाबा ने स्वयं कई सालों तक अपने हाथों से पौधों को सींच-सींचकर खूबसूरत फूलवारी का रूप दिया था। यह जगह मस्जिद के पीछे थी और बूटी ने उसे मोल ले लिया था।


दरअसलबाबा जब भी कभी रहाता जाते, तो वहां से जाई-जूही और जाने कितने ही पौधे साथ लेकर आते उन्हें बड़े प्यार से रोंपते वामन तात्या नाम का एक कुम्हार था वह बाबा को अपनी श्रद्धा-भक्ति से दो कच्चे घड़े दिया करता था बाबा इन्हीं कच्चे घड़ों से पौधे सींचते इस तरह वहां एक सुंदर फुलवारी का निर्माण हो गया इसी जगह पर बापूसाहेब बूटी ने दगड़ीवाड़े का निर्माण कराया। दगड़ीवाड़ा यानि पत्थर से बना वाड़ा। उसी जगह अब भी बाबा अपने भक्तों के सुखों को सींचते हैं। यहीं पर साई की समाधि के स्पर्श भर से दुःख की कलियाँ सुख की सुवास में बदल जाती है।


आज इस जगह पर बाबा विश्राम कर रहे हैं जिसे हम लोग समाधि मंदिर के नाम से जानते हैं शिर्डी में दुनियाभर से लोग आते हैं वे बाबा की समाधि में माथ टेककरझोली फैलाकरअंजुली फैलाकरफूल चढ़ाकर और कुछ हो तो दो आंसू गिरा कर दुआएं मांगते हैं यहां जो आयावो खाली हाथ नहीं गया उस फकीर ने हमारी झोली हमेशा भरी

बाबा यही चाहते थे कि उनके समाधीस्थ होने के बाद लोग अच्छाई और सच्चाई के मार्ग से भटके नहीं दीन-दुखियों की मदद करने में पीछे हटें उन्हें सही मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहे बाबा मुकुंदराव बूटी को प्यार से बूटिया कहा करते थे बाबा ने उनके जरिये लोगों की मदद का एक रास्ता निकाला मुकुंदराव ने भी अपने धन का इस तरह सदुपयोग किया। जो शामा बाबा के सशरीर रहते हुए उनके भक्तों को बाबा के पास ले आता और अपनी बात मनवा लेता, उसी शामा के प्रयासों से आज बाबा की समाधि हम सभी के चेहरों पर मुस्कान लेकर आती है।


बाबा भली कर रहे..