Sunday, 28 December 2014

जो जिंदगी बदल दो, असली चमत्कार वो है; और बाबा ने वही किया..


मन का क्या है; भागता; रहता चारों ओर ।
करो समर्पित साई को मिले तभी उसे ठौर ।


जीवन में जो अप्रत्याशित और असंभावी होता है, हम उसे चमत्कार कहते हैं। जिसके बारे में कभी हमने सोचा नहीं; और यदि कल्पना की भी तो, उन्हें साकार करने की हमारे अंदर शक्ति नहीं थी। उनके प्रयोग के तौर-तरीके हमें नहीं पता थे।

मतलब, जो हम अपने जीवन में साक्षात नहीं कर पाए, अगर कोई दूसरा उसे करके दिखाता है, तो वो हमारे लिए चमत्कार हो जाता है। हम उस व्यक्ति को असाधारण व्यक्तित्व मानने लगते हैं। उसे पूजने लगते हैं। उसकी कहीं बातों और सलाह-मश्वरों पर अमल करने लगते हैं।...और हमें करना भी चाहिए, अगर उस व्यक्तित्व के चमत्कार समाज को एक नई दिशा देते हों, देश के हित में हों, हमारी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाते हों, जो संसार को संस्कारित करने की पहल करते हों।


बाबा ऐसे ही चमत्कारिक संत थे। वे प्रयोगधर्मी थे। वे एक ऐसे महापुरुष थे; जो लोगों को सच के रास्ते पे चलने का मार्ग दिखाते थे। वे एक ऐसे शिक्षक थे; जो अपने भक्तों को अच्छाई का पाठ पढ़ाते थे। उन्हें एक ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर भी याद कर सकते हैं, जो अपने नये-नये प्रयोगों से लोगों की आंखों पे पड़े अज्ञानता के पर्दे को हटा देते थे।


साईं बाबा ने वही चमत्कार किए। उनका आशीर्वाद, सान्निध्य हमें वहीं सुखद अनुभूति देता है, जैसी हमें अपने पुरखों के स्मरण के दौरान मिलती है। बाबा का सम्पूर्ण व्यक्तित्व चमत्कारिक था। उनके भीतर एक चुंबकीय प्रभाव था, जो हमें खींच लेता था। चुंबक बेहद प्रभावशाली तत्व है, जो बिजली के उत्पादन में सहायक की भूमिका निभाता है। बिजली हमें रोशनी देती है, हमारे दैनिक जीवन में काम आने वालीं तमाम भौतिक चीजों जैसे पंखा, टीवी, कूलर, फ्रिज आदि चलाने के काम आती है।


बाबा का चुंबकीय प्रभाव हमारे मन में विद्युत पैदा करता है। सकारात्मक ऊर्जा का ऐसा करंट दौड़ाता है, जो हमारे तंत्रिका तंत्र को अच्छे कर्मों के लिए उद्देलित करता है। मन को शांत करता है, तन को स्फूर्ति देता है। यानी अंदर और बाहर दोनों से हमें निर्मल कर देता है।


जब तब इनसान चांद तक नहीं पहुंचा था, तब तक चांद से टुकड़ा तोड़कर लाना एक कल्पना मात्र थी। लेकिन जब इनसान ने चांद पर कदम रखा, वहां की माटी, पत्थर धरती पर लाए, तो हमने उसे चमत्कार कहा। यह इनसान का किया चमत्कार था। इनसान लगातार चमत्कार कर रहा है। सारे चमत्कारों की जनक सकारात्मक ऊर्जा है, जो हरेक बंदे के भीतर निहित है। लेकिन उस ऊर्जा का प्रयोग करना एक कला है और अपने अंदर की इस कला को परखना एक चुनौती। बाबा का सान्निध्य हमें इसी आर्ट में पारंगत करता है। हमें इस चुनौती के लिए तैयार करता है।


चमत्कार को सभी सलाम करते हैं। लेकिन बाबा आज भी जो चमत्कार करते आ रहे हैं, उन्हें सिर्फ सलाम ठोंककर अपने-अपने रास्ते बढ़ लेना काफी नहीं है। उन चमत्कारों के पीछे छिपे मकसद को जानना-पहचानना और उन्हें आत्मसात करना अत्यंत आवश्यक है, तभी हम स्वयं को बदल सकते हैं, समाज में बदलाव लाने की बात सोच सकते हैं, दुनिया में बदलने की पहल कर सकते हैं।


तब की एक कहानी....
बात 1910 की है। शिर्डी के आसपास के क्षेत्र में हैजा फैला हुआ था। यह बीमारी कहीं शिर्डी तक न पहुंच जाए, इसे लेकर लोग परेशान थे; डरे हुए थे। एक दिन लोगों ने देखा बाबा मस्जिस्द में बैठे चक्की पर गेंहू पीस रहे हैें। यह देखकर लोगों को आश्चर्य होना लाजिमी था, क्योंकि दो-तीन रोटी खाने वाले एक बाबा को ढेर-सारे आटे की क्या आवश्यकता पड़ी? ऐसा अचरज भरा दृश्य लोगों के मन में किस्म-किस्म के सवाल पैदा करने लगा। कुछ महिलाओं ने बाबा को उठाकर गेंहू पीसने का काम अपने जिम्मे लिया, लेकिन उनकी नीयत कुछ और थी। मौका पाकर वे आटा अपने साथ लेकर जाने लगीं। बाबा ने उन्हें फटकारा। आदेश दिया कि, यह आटा गांव की मेंड़(सरहद) पर बिखेर दिया जाए। लोग बुरे मन से ऐसा कर आए। कुछ दिनों में लोगों ने देखा कि, हैजे का दुष्प्रभाव खत्म हो गया है।



वर्षों से एक कहावत चली आ रही है, गेंहू के साथ घुन पिसता है। बाबा चक्की में गेंहू नहीं; हैजा रूपी घुन पीस रहे थे। यह बाबा की लीला थी। व्यक्ति में अपार ऊर्जा निहित होती है। वो इसी की शक्ति से असंभव को संभव में बदलता है। लेकिन बाबा तो स्वयं ऊर्जा का स्त्रोत थे। इसलिए उनके लिए कोई भी काम असंभव नहीं था और आज भी नहीं है।

Friday, 26 December 2014

साई की लीला अपरंपार...


स्मरण करके देख लो ऊं साई का नाम।
स्वत: पूरे हो जाएंगे बिगड़े सारे काम।

ईश्वर कौन है? जिंदगी जीने का सही तरीका क्या है? धर्म क्या है; कर्म क्या है? पाप क्या है; पुण्य क्या है? ऐसे कई सारे प्रश्न हैं, जिनका साई ने अपने अलहदा तरीके से उत्तर दिया है। साई के बारे में जितना भी कहो; कम है। उनके बारे में कोई कुछ कह भी नहीं सकता। साई जब तक सशरीर पृश्वी पर मौजूद रहे; लोगों को; भक्तों को उनकी शंकाओं-कुशंकाओं से उबारते रहे।

कुछ लोग कहते हैं कि; साई ईश्वर का अवतार थे। कइयों का मानना है कि; वे चमत्कारिक महापुरुष थे; संत थे, बाबा थे। लेकिन साई क्या थे? उसे समझने के लिए अंतरमन में झाकना होगा; क्योंकि साई सबकुछ थे। वे हमारे मन में बैठी भावनाएं थे; जो हमारी इंद्रियों के जरिये अपनी अभिव्यक्ति करते थे। 

साई के परमभक्त श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर; जिन्हें बाबा हेमाडपंत कहकर पुकारते थे; ने अपनी पुस्तक श्री साई सच्चरित में बाबा की लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया है। जिन्होंने यह अद्भुत ग्रंथ; पवित्र ग्रंथ पढ़ा है, वे भली-भांति जानते-समझते हैं कि; बाबा ने मानव अवतार क्यों लिया था

हेमाडपंत ने यह यह महाग्रंथ मराठी भाषा में लिखा था, जिसका श्री शिवराम ठाकुर ने हिंदी में अनुवाद किया था। बगैर बाबा की आज्ञा के उन पर एक शब्द भी लिख पाना मुमकिन नहीं। कलम तभी चलेगी; दिमाग तभी काम करेगा, जब बाबा आपको आज्ञा दें। बाबा की आज्ञा थी; उनके भक्तों की अनुग्रह कि; मैं बाबा की कहानी; उनकी लीलाएं; उनकी बातें सरल भाषा में नई पीढ़ी तक पहुंचाऊं। कई बार कोशिश की; हर बार अल्पविराम लगता रहा। लेकिन बाबा ने आज्ञा दी, तब यह पुस्तक लिखने का प्रयास किया।

समय के साथ तमाम चीजें बदलती हैं। जीवनशैली में व्यापक बदलाव आता है। बोलने-चालने के तौर-तरीके बदलते हैं। बाबा के बारे में कौन नहीं जानता? लेकिन सिर्फ जानना ही काफी नहीं है। ईश्वरीय अवतार बाबा किस प्रयोजन से मानव अवतार में आए? वे अपने भक्तों/आमजनों को क्या संदेश देते थे; देना चाहते हैं; इसे ध्यान से समझना भी आवश्यक है। जो नई पौध; युवा पीढ़ी के बीच बाबा के संदेश सरल और सहज भाषा/उदाहरणों के साथ पहुंचे; हमने इस पुस्तक के जरिये बस यही एक छोटा-सा प्रयास किया है।

बाबा के अवतरण; और समाधि 15 अक्टूबर 1918 के दरमियान उनका सान्निध्य पाने वाले लोगों ने जो कुछ देखा/सुना और पाया अथवा महसूस किया; यह पुस्तक उन्हीं सत्य घटनाओं को सरल तरीके से शब्दों में पिरोने की एक छोटी कोशिश है।
बाबा महाराष्ट्र के परभानी जिले के पथरी कस्बे में जन्मे। हालांकि बाबा की लीला अपरंपार है, वे कहां से अवतरित हुए; यह ठीक से कोई नहीं जानता। बाबा ने अपनी जिंदगी की लंबा वक्त; महानिर्वाण तक शिरडी में गुजारा। बाबा के पावन चरणों का प्रतिफल ही है कि; शिरडी आज दुनिया में तीर्थ स्थल के तौर पर जाना-पहचाना जाता है। यहां जो मुराद लेकर आता है, खाली हाथ नहीं जाता। इस पुस्तक की रचना भी हमारे लिए एक मुराद पूरी होने जैसा ही है।

हेमाडपंत ने बाबा की जीवनी को कहानियों के रूप में अपनी पुस्तक श्री साई सच्चरित्र में उतारा है। ये वो सच्ची घटनाएं हैं, जिन्होंने मानव जगत को एक नई दिशा-दशा दी। इस पुस्तक में इन्हीें कहानियों का संक्षिप्त पुट आपको दिखाई पड़ेगा।