Thursday, 1 January 2015

साई के स्मरण से शुरू करो हर काम...



तन को मिलती ताजगी, निर्मल होता मन।
ऐसे साई राम को; शत-शत करो नमन।


साई; यानी ज्ञान गुरु, जिनका स्मरण मात्र हमारे चक्षु खोल देता है। दिमाग की बत्ती जला देता है और हमें हमारे अच्छे-बुरे का आभास करा देता है। तो आइए, हम सर्वप्रथम स्वयं को बदलने का श्रीगणेश करें। बाबा का स्मरण करें। जब भी हम कोई नई शुरुआत करते हैं, श्रीगणेश को याद करते हैं। गृहप्रवेश करने से पहले श्रीगणेश का स्मरण करते हैं, नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाते हैं, तो श्रीगणेशाय: नम: बोलते हैं। परीक्षा देने से पहले गणपति का स्मरण करते हैं। ठीक वैसे ही बाबा को याद करिए। साईं सबका भला करेंगे।


 वक्र तुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभ
निविघ्नम कुरुमे देव, सर्वकार्ये सू सर्वदा


काल करे जो आज कर; इसलिए खुद को बदलने की प्रक्रिया इसी पल से शुरू करते हैं। जिस तरह हम सर्वप्रथम गौरी पुत्र गणेश को वंदन करते हैं। ठीक वैसे ही बाबा का स्मरण भी करें। जिस प्रकार गणेश जी विघ्न विनाशक हैं, उसी प्रकार साईं भी दु:ख हरता हैं, सुखदाता हैं। अब ऐसा प्रतीत कीजिए कि हम साईं के सान्निध्य में हैं और वे हमें साक्षात नजर आ रहे हैं। आइए, प्रार्थना करते हैं कि हे बाबा तुम ही मेरे गणपति हो, तुम आओ और मेरे सारे संकट हर लो।


जैसे श्रीणेश के बाद हम हम श्वेतवर्णी हंस वाहिनी मां सरस्वती का आह्वान करते हैं। हम उनकी बंदगी करते हैं, ताकि वे हमारी जिव्हा(जीभ) को इतना संतुलित कर दें। जाने-अनजाने भी वो हमारे वश में रहे, संयम में रहे। बाबा का स्मरण भी, जिव्हा को तमाम दोषों से दूर करता है। उसे संयम में लाता है। अच्छा बोलने के तौर-तरीके सिखाता है। व्यक्ति के तमाम महत्वपूर्ण अंगों में जिव्हा का अपना एक अलग महत्व है। वो जरा-सी डगमगाई कि, सारा जीवन नर्क हो जाता है। बाबा का स्मरण उसे शब्दों का नाप-तौलकर बोलने की कला सिखाता है। स्मरण कीजिए और कहिए, हे सांई तुम ही तो हमारी सरस्वती हो। आओ हमारी जिव्हा पर विराजो और उसे पवित्रता प्रदान करो।


या देवी सर्व भूतेषु, बुधि रुपेण संस्थिताम.
नमस्तस्यय नमस्तस्यय, नमस्तस्यय नमो नम:


मां सरस्वती के बाद हम स्मरण करते हैं संसार के सृजनकर्ता भगवान विष्णु का। भगवान ने स्वयं कहा था, मैं समय-समय पर संतों के रूप में इस धरा पर आऊंगा, लेकिन मैं भक्तों के आचार-विचार में सदा मौजूद रहूंगा। बाबा हमारे रक्त में बहते वही आचार-विचार हैं। वो हमारी शिराओं में बहने वाले रक्त के कण में घुल-मिलकर उसे ह्दय ते पहुंचाते हैं, ताकि मैला रक्त शुद्ध हो और हमारे जीवन में शक्ति का संचार करे। पवित्र भाव पैदा करे। तमाम शारीरिक और सामाजिक बीमारियों से हमार बचाव करे।
इसलिए, हे सांई तुम ही तो हमारे विष्णु हो।


ना हम वसानि वैकुंडे., योगिना ह्दये नचा


इस पावन धरती पर कई ऋषि-मुनियों का जन्म हुआ। भगवान श्री गणेश, मां सरस्वती और सृजनकर्ता विष्णु के तदुपरांत हमें अच्छे कामों की शुरुआत के पहले उन्हें स्मरण करते हैं। ये महापुरुष/साधु-संत/ऋषि-मुनि हैं, जिन्होंने मानव जाति के कल्याण के लिए अपना सारा जीवन होम कर दिया। भगवान के बाद इस धरा पर संस्कारों की गंगा बहाने वाले समस्त मुनियों जैसे, एकनाथ तुकाराम, नामदेव इन सभी देवों को हम नमन करते हैं। इन सभी के रूप बाबा में विद्मान हैं। यही एक कारण हैं, जब हम साईं बाबा का पुण्य-स्मरण करते हैं, तो एक साथ कई अच्छे भाव, नेक इरादे हमारे मन-मस्तिष्क को उद्देलित कर देते हैं। जब हम उनका बखान करते हैं, तो उनके आशीर्वचन हमारे घर-संसार को खुशियों से भर देते हैं।


सर्वे भवन्तु सुखीन: सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्चन्तु मा कश्चित दु:ख भाग भवेत


हमारे जीवन में गुरुओं का अहम स्थान होता है। ईश्वर रचियता हैं। उनकी रचनाओं या पाठों को एक एकसूत्र कहें या एक पुस्तक में संजोते हैं साधु-संत, ऋषि-मुनि और महापुरुष। कोई भी पाठ या पुस्तक तब तक असरकारक नहीं होती, जब तक कि, उसमें लिखे विषयों का कोई संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या नहीं करता। या उन्हें प्रयोग करके हमें नहीं समझाता। जो रचना करता है, वही ईश्वर है, चाहे वो कोई भी हो, कैसा भी व्यक्ति हो। हमारे लिए घर बनाने वाला मिस्त्री, हमारे पैरों को कांटों-कंकड़ों से सुरक्षित रखने के लिए जूते-चप्पल बनाने वाला मोची, अन्न उगाने वाला किसान और हमें जन्म देने वाली मां, सभी ईश्वर का अंश हैं। वे वैज्ञानिक, रिसर्चर आदि भी भगवान हैं, जो मनुष्य के जीवन को खुशहाल और समृद्ध बनाने लगातार नई चीजें ईजाद करते हैं।


परम पिता परमात्मा की इन्हीं सब रचनाओं को एक पुस्तक में संजोते हैं, साधु-संत, ऋषि-मुनि और महापुरुष। महापुरुषों की फेहरिस्त अपरंपार है। इनमें पिता भी शामिल हैं, जो हमें ढंग से चलना सिखाते हैं। हमारे मित्र भी शामिल हैं, जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
इन सबमें गुरुओं का स्थान सर्वोपरी होता है। वे ईश्वर तुल्य होते हैं। क्योंकि वे साधु-संत, ऋषि-मुनि और महापुरुषों की कहें बातें, या पाठ को प्रयोग करके हमें समझाते हैं।


एक उदाहरण से ईश्वर, महापुरुष और गुरु की महिमा समझिए। ईश्वर के अवतार में जन्म लेने वाला एक वैज्ञानिक साइकिल ईजाद करता है, लेकिन वो साइकिल तब तक हमारे लिए अजूबा थी, जब तक कि हम उसे चलाना नहीं सीखे। अब ईश्वररूपी वैज्ञानिक ने साइकिल ईजाद की और वो अपनी दूसरी रचनाओं यानी रिसर्च में लग गया। वो व्यस्त हो गया, तो अब हमें साइकिल चलाना कौन सिखाएगा? यह सवाल खड़ा हुआ।  साधु-संत, ऋषि-मुनि या कहें महापुरुष आगे आए और उन्होंने साइकिल चलाने की मैथड समझी और उसे एक पुस्तक में लिख दिया। यानी उन्होंने एक पाठ तैयार किया, जिसमें साइकिल चलाने के तौर-तरीके बताए गए थे।


लेकिन क्या हम अपनी जिंदगी में पढ़-लिखकर ही सबकुछ सीख पाते हैं? बिलकुल नहीं। जब तक किताबों में कहीं बातें कोई हमें प्रयोग करके सरल तरीके से न समझाए हमारे पल्ले नहीं पढ़तीं। साइकिल चलाने का प्रैक्टिकल हमें हमारे माता-पिता या करीबी लोग कराते हैं। वे हमारे गुरु होते हैं। यानी गुरु वो व्यक्तित्व है, जो हमें आनंदमयी जिंदगी जीने के तौर-तरीके सिखाते हैं।


साईं बाबा हमारे गुरु भी हैं। उनका सान्निध्य हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। वे महापुरुष भी हैं, जिन्होंने ईश्वर की कहीं बातें, विषयों को हमारे लिए एकसूत्र में पिरोया। बाबा हमारे भगवान भी हैं, जिन्होंने जिंदगी को सुखमयी-निरोगमयी और तमाम सारी सामाजिक बुराइयों से बचाने के नुस्खे तैयार किए।


यानी बाबा गुरु, ब्रह्मा, विष्णु आदि सभी की भूमिकाओं में हमारे बीच मौजूद हैं।


गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा
गुरुर साक्षात परब्रह्म, तस्मे श्री गुरुवे नम:


वे हमारे अंदर नई ऊर्जा के रचियता भी हैं, अच्छाई के जनक भी हैं। इसलिए ब्रह्मा-तुल्य हैं। वे हमारे अंदर की बुराइयों का संहार करते हैं, इसलिए विष्णु-तुल्य हैं। वे हमारे मन के मैल को दूर करने अपनी वाणी और सान्निध्य से निर्मल गंगा का बहाव करते हैं, इसलिए महेश्वर-तुल्य हैं। वे इन सबसे ऊपर हमारे गुुरु भी हैं। गुरु का स्थान ईश्वर से भी पहले इसलिए रखा जाता है क्योंकि वो हमें सही-गलत का आभास कराते हैं। अच्छे कर्मों की सीख देते हैं। अगर हम बुरे विचारों में फंसे रहे, पाप का घड़ा भरते रहे, तो हम भला ईश्वर को भी कैसे पहचानेंगे? कण-कण में विराजे भगवान हमें कैसे नजर आएंगे? इसलिए हमेशा बाबा का स्मरण करते रहें, ताकि विकार हमारे अंदर प्रवेश न कर पाएं।


भगवद्गीता में(चौथा अध्याय 7-8) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार धारण करता हूं। बाबा का अवतरण भी इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा रहा है। उन्होंने सबका मालिक एक यानी सभी धर्मों को बराबर का महत्व दिया। लोगों को ऊंच-नीच, जात-पात और धर्म-सम्प्रदाय के भेद से उबारा। सबको एक धुरी पर लाए, एक मंच पर बैठाया।


त्वमेव माता श्च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वम मम देव देव


साई माता भी हैं और पिता भी। वे हमारे मित्र भी हैं। जिस तरह मां-बाप हमें जन्म देते हैं, साई हमें बुराइयों से बाहर निकालकर नये जन्म देते हैं। वे एक अच्छे सखा की तरह हमें सही सलाह देते हैं। वे हमारी आंखों पर पड़े दुष्कर्मों के पर्दे हटाते हैं, यानी हमारे ज्ञान चक्षु खोलते हैं। वे हमारे ईश्वर हैं, क्योंकि उनकी छत्रछाया में हम निरोगी और सुखी रहते हैं।


तब की एक कहानी....


बात 1910 की है। दीपावली का अवसर था। सर्दी धीरे-धीरे बढ़ रही थी बाबा धूनी के समीप बैठे ताप रहे थे। अचानक बाबा ने धूनी में लकडिय़ां डालते-डालते अपना हाथ उसमें डाल दिया। इससे उनका हाथ जल गया। लोगों ने पूछा,बाबा आपने ऐसा क्यों किया? बाबा ने जो जवाब दिया कि, वहां से कुछ दूरी पर एक लुहारिन भट्टी धौंक रही थी। उसका छोटा-सा बच्चा कमर से बंधा हुआ था। तभी उसके पति ने उसे पुकारा। लुहारिन तुरंत दौड़ी, लेकिन इस भागाभागी में उसका बच्चा भट्टी में गिरने ही वाला था कि, बाबा ने उसे पकड़ लिया।


बाबा अंतरयामी थे; हैं; और रहेंगे। देश-दुनिया में क्या घटित हो रहा है, उन्हें सब ज्ञात होता है। यह बाबा का सिर्फ एक चमत्कारभर नहीं था,बल्कि एक संदेश था। अगर कोई मुसीबत में हो; उसकी तकलीफ बड़ी हो; तो मदद के लिए आगे आएं, इसके लिए भले ही हमें थोड़ा कष्ट क्यों न उठाना पड़े। एक अच्छे पड़ोसी; मित्र; गुरु का कत्र्तव्य निभाएं। ऐसा नहीं कि; उसकी सेवा से हमें क्या मिलेगा? बाबा ने अपना हाथ जलाया, लेकिन उस बच्चे को बचाकर उन्हें जो असीम आनंद मिला, उससे बड़ी पूंजी और क्या हो सकती है?


हम सारी जिंदगी सुख की तलाश ही तो करते हैं! नौकरी, पेशा, शादी-ब्याह, बच्चे आदि सारे प्रयोजन सुख पाने की लालसा ही तो है! तो फिर सुख के दूसरे जरिये क्यों नहीं ढूंढते; जैसे बाबा ने एक बच्चे की जान बचाकर हासिल किया। दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाना; सबका बड़ा सुख है। बाबा समय-समय पर ऐसे चमत्कार करके लोगों को यही संदेश देते रहे; और आज भी दे रहे हैं। बाबा का स्मरण कीजिए और कुछ ऐसे ही अच्छे कार्यों की शुरुआत कीजिए। लोगों की मदद कीजिए और असीम सुख पाइए।

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