Sunday, 12 April 2015

भूल का सुधार करो..


नियंत्रण एक ऐसा शब्द है, जिसने भी उसमें महारथ हासिल कर ली; उसे जीवन में कोई तकलीफ नहीं हो सकता। बाबा ने अपने अंदरुनी तत्वों पर इतना नियंत्रण पा लिया था कि; वे उनके माध्यम से लोगों की भलाई करते थे। बाबा परमयोगी थी, यह सबको पता है। एक बार की बात है, शिर्डी में मूसलधार बारिश हुई। लोग परेशान हो गए और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे। 

गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर उर्फ हेमाडपंत ने श्री साई सद्चरित्र में उल्लेख किया है कि; यूं तो शिर्डी में देवियां यानी देवियों के मंदिर बहुत हैं, लेकिन उस दिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। आखिकार सभी रामबाण औषधि यानी बाबा के पास पहुंचे। सब एक सुर में कहने लगे, बाबा हमारी मदद करो, हम तुम्हारी शरण में हैं। बाबा बाहर निकले। अपना चिमटा आकाश की ओर दिखाया और बोले, अब रुक जाओ। बाबा का इतना कहना था कि बारिश थम गई। 
Shri Hemadpant

एक ऐसा ही किस्सा और है, जब मस्जिद में धुनी की लपटे बेहद ऊंची-ऊंची उठ रही थीं। इतनी ऊंची कि लोगों को लग रहा था कि कहीं छत ही न जल जाए। बाबा ने तुरंत ही अपना सटका जमीन पर मारा और कहा कि अब रुक जाओ। लपटें शांत हो गईं। 

एक बार श्यामा को सांप ने डस लिया। लोग उसे ओझा के पास ले जाने लगे। उन्हें विश्वास था कि, झांड़- फूंक से वो ठीक हो जाएगा। तब श्यामा ने कहा, मेरा ओर कोई नहीं; मेरा तो केवल बाबा है। विश्वास हो तो ऐसा। अमृत की एक ओर बूंद चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों अपने इष्ट से विश्वास कम नहीं होना चाहिए। श्यामा ने कहा, मुझे बाबा के पास ले चलो मुझे। देखिए बाबा भी कैसी लीला रचते हैं। जैसे ही लोग उसे मस्जिद में ले जाने लगे, बाबा गरजे, अरे ओ बम्मन रुक जा बाहर।
  
श्यामा का सरनेम देशपांडे था। यानी वे ब्राह्मण थे और नाग भी ब्राह्मण माना जाता है। बाबा ने श्यामा से कह,ा तुम घर जाओ और ऊदी लगा लो। जब तक मैं कहूं जागते रहना। सोना नहीं बिल्कुल। चलते-फिरते रहना। श्यामा डर गया था कि मुझे बाबा ने क्यों रोका अंदर आने से। उसे अपना अंत निकट दिखने लगा। हालांकि श्यामा ने वैसा ही किया; जैसा बाबा ने बोला था। 

जब हम दु:ख-तकलीफ में होते हैं, तो हमारा अंतर्मन हमें बहुत कुछ कहता है। कई बार हमारा ईश्वर से भी भरोसा डगमगा जाता है। श्यामा के मन में भी तरह-तरह के विचार आए कि, बाबा क्या नहीं चाहते कि श्यााम ठीक हो? उसे बाबा के पास नहीं; वैद्य या ओझा के पास जाना चाहिए था, लेकिन अब श्यामा कुछ नहीं कर सकता था। उसने बाबा की बात मानी। जब श्यामा बिल्कुल ठीक हो गया, तब उसे लगा कि, अपने ईष्ट पर पूरा भरोसा करना चाहिए। 

हम लोग अनेक बार इस बहस में उलझ जाते हैं कि सगुण ब्रह्म की आराधना करनी चाहिए या निर्गुण ब्रहम की। बाबा ने हमेशा सगुण उपासना पर ही जोर दिया है। उस भगवान की पूजा करो, जिसके पास आकार है। दरअसल, सगुण उपासना करने से हम ईश्वर के अधिक निकट पहुंच जाते हैं, क्योंकि हम उसे अपने तरीके से देख पाते हैं और हमारा ध्यान अधिक केन्द्रित होता है। 


भूल का सुधार करो...

मानव यौनी में जन्म लिया है, तो गलतियां होना स्वाभाविक-सी बात है। हमसे नित्य भूलें होती हैं, लेकिन उन्हें सुधारना भी आवश्यक है। नई गलतियां संभावित हैं, लेकिन एक ही गलती को बार-बार दुहराना जीवन को नर्क बना देता है। बाबा लोगों को गलतियां सुधारने का अवसर देते थे। 
एक बार की बात है। एक थे तरखड़। उनके घर पर बाबा की मूर्ति रखी हुई थी। वह स्वयं प्रार्थना समाजी थे याने कि निर्गुण उपासना करते थे। एक दिन उनकी पत्नी सीतादेवी और बेटा ज्योतेंद्र शिर्डी जाने के लिए निकले। वे विशेष रूप से अपने पिता को कहकर निकले कि, हम रोज बाबा को नैवेद्य अर्पण करते हैं, कृपया जब तक हम वापस नहीं आते, यह जिम्मेदारी आप उठा लेना। चूंकि बात पत्नी और बेटे ने कही थी, सो श्रीमान तरखड़ ने हंसते हुए उसे स्वीकार किया। 
Shri Jyotindra Tharkad


दो दिन तो सब ठीक चलता रहा, लेकिन तीसरे दिन वह भूल गए। उधर, तरखड़ की पत्नी बेटे बाबा के दर्शन को पहुंचे पहुंचे। बाबा ने मुस्कराकर कहा,माई! मैं आज तेरे घर गया था, लेकिन बाहर ताला पड़ा था। मैं भूखा ही चला आया। श्रीमती तरखड़ को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उनके बेटे को बाबा के कहने का आशय ज्ञात हो गया। वह समझ गया कि जरूर पिताजी से कोई भूल हुई है।

उधर, दूसरी ओर श्रीमान तरखड़ कामकाज से निवृत्त होकर जब दोपहर भोजन के लिए घर पहुंचे, तो अपने रसोइये से बोले, वो जो बाबा को आज नैवेद्य अपर्ण किया था, वह मेरे खाने के लिए ले आओ। रसोइये ने जवाब दिया, आज आप नैवेद्य अर्पण करना भूल गए हैं। 
तरखडज़ी को फौरन अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने एक पोस्टकार्ड निकाला और बेटे को अपनी इस भूल के बारे में लिखकर उसे शिर्डी पोस्ट कर दिया। दूसरी ओर बाबा से बातचीत के बाद उनके बेटे ने भी ऐसा ही एक पोस्टकार्ड लिखकर पोस्ट कर दिया था। दो दिन बाद दोनों पोस्ट कार्ड अपने-अपने पते पर पहुंच गए। पोस्टकार्ड पढ़कर बाप-बेटे को ज्ञात हो गया कि, बाबा अंतरयामी हैं। उनसे कुछ भी छुपा नहीं है। यानी बाबा ने उन्हें गलतियों का एहसास करा दिया था। बाबा का मकसद यह नहीं था कि, वे उन्हें नैवेद्य चढ़ाना क्यों भूल गए? बाबा तो यह बताना चाहते थे कि, अगर किसी से कोई वादा करो, तो उसे निभाओ, वर्ना करो मत। हमारे अंदर जितनी सामथ्र्य है, उसी के अनुसार वचन देना चाहिए।


एक और किस्सा सुनिए। बाला बुआ सिधार, जिनको आधुनिक तुकाराम भी कहा जाता है। एक दिन वह बाबा के दर्शन को पहुंचे। बाबा ने उनसे कहा, मैं तो तुम्हें चार साल से जानता हूं। बाला बुआ तो पहली बार शिर्डी आए थे, इसलिए उन्हें बाबा की बात पर हैरानी हुई। वे अपने दिमाग पर जोर देने लगे। क्योंकि यह बात बाबा ने कही थी, इसलिए एकदम उसे नकारा भी नहीं जा सकता था। वे सोचने लगे। तभी उन्हें याद आया कि, लगभग 4 साल पहले उन्होंने बाबा की तस्वीर एक दुकान में देखी थी और उसे नमन किया था।

साई सद्चरित्र में बाबा ने दाभोलकर से लिखवाया है कि मेरे चित्र के दर्शन करना; मेरे साक्षात दर्शन करने जैसा है। बाबा कहां-कहां; क्या-क्या करते हैं, कोई इसका आकलन नहीं कर सकता। साई सद्चरित्र के लेखक हेमाडपंत के घर होली का भोज था। हेमाडपंत बाबा से वादा लेकर आए थे कि, वे इस होली भोज में मुंबई में जरूर शामिल होने आएंगे। 

होली का दिन आ गया। हेमाडपंत बाबा का इंतजार करते रहे। समय बीतता जा रहा था, लेकिन बाबा की आहट तक नहीं हुई। हेमाडपंत को मन में पहले से ही शंका थी कि, बाबा ने वादा तो कर दिया है, लेकिन वह साक्षात आएंगे नहीं। अब बाबा किस स्वरूप में आएंगे, यह जानने के लिए हेमाडपंत ने इंतजार किया फिर किबाड़ बंद करके सांकल चढ़ा दी। वह खाना खाने बैठने ही वाले थे कि, दरवाजे पर दस्तक हुई। एक मुसलमान सज्जन बाबा की एक तस्वीर लेकर उनके दरवाजे पर खड़े थे। यानी बाबा पहुंच गए थे। उन सज्जन ने हेमाडपंत से कहा, यह तस्वीर आप संभालिए। हमसे किसी ने कहा है कि यह तस्वीर आप बहुत संभाल कर रख सकते हैं। इस तरह बाबा भोजन के वक्त हेमाडपंत के घर पहुंच गए थे। 

 इस तस्वीर की भी एक कहानी है। उन मुसलमान सज्जन ने अपने घर पर अनेक बाबाओं-संतों की तस्वीर लगा रही थी। एक बार उनकी तबियत बिगड़ी। लंबे इलाज के बावजूद जब तबियत में सुधार नहीं हुआ, तब उनके गुरु ने कहा कि, तुमने अपने घर में जो इतनी सारी तस्वीरें लगा रखी हैं, इसके कारण तुम्हें तकलीफ हो रही है। वे सज्जन उस वक्त अस्पताल में थे। उन्होंने तुरंत अपने मैनजर को घर भेजा और कहा कि, मैं अपने गुरु की अप्रसन्नता का कारण नहीं बनना चाहता। तुम जाओ और जितनी भी तस्वीरें लगी हैं, सबको विसर्जित कर दो। जब वे ठीक होकर घर पहुंचे, तो देखा कि सारी तस्वीरें विसर्जित हो गई थीं, बस साई की तस्वीर अभी भी दीवार पर लटक रही थी। वे सज्जन बाबा की लीला समझ गए थे। इसी तस्वीर को लेकर वह हेमाडपंत के पास पहुंचे थे।

दरअसल, बाबा एक बार किसी को अपनी शरण में ले लें, तो उसका हाथ कभी नहीं छोड़ते। उसे सही राह पर लाकर ही रहते हैं। उसके सुख-दु:ख में बराबर के भागीदार बनते हैं। बाबा भले ही साक्षात हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनकी ऊर्जा आज भी हमारा मार्गदर्शन करती है।

2 comments:

  1. Nice... Om Shri sai nathaya namaha... Haan... Hamare to keval babaji hai.. Baba ji. K siva hamara koi nahi hai...

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