Tuesday, 21 April 2015

भाग्य भरोसे बैठकर; न बदले कभी संसार..


रेखाओं का खेल नहीं; इनसानों का मुकद्दर।
कर्म करो; जीतो जहां, कहलाओगे सिकंदर।

आज हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, उसकी तरक्की का आधार क्या है? इंटरनेट, मोबाइल, टीवी, अत्याधुनिक गाडिय़ां, ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें, खाने-पीने के नये-नये प्रयोग; इन सबके पीछे क्या है? इसका सीधा-सरल जवाब है-कर्म! सोचिए, अगर इन अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले लोग भाग्य भरोसे बैठे रहते और कुछ भी नये प्रयोग नहीं करते, तो क्या हमारे सामने आज ये सब चीजें होतीं? यकीनन नहीं! इसका साफ-साफ मतलब होता है कि, कर्म से बढ़कर मानव जीवन में दूसरी कोई चीज नहीं। कर्म करोगे, तो फल अवश्य मिलेगा।

दरअसल, ज्यादातर लोग ज्योतिष और पंडित के भरोसे बैठकर वो कर्म भी नहीं करते; जो उन्हें करना चाहिए। ज्योतिष-पंडित हमारे मार्गदर्शक हैं, वे हमें रास्ता दिखाते हैं, लेकिन हम यह सोचकर भाग्य भरोसे बैठ जाते हैं कि; मंजिल खुद-ब-खुद चलकर हमारे कदमों के नीचे आ जाएगी। ऐसा कभी नहीं होता। भगवान राम को भी सीता को रावण से छुड़ाने लंका पर चढ़ाई करनी पड़ी थी। हनुमानजी को समुद्र लांघकर लंका तक जाना पड़ा था। यह उनका कर्म था, जो उन्हें भी करना पड़ा।


पंडित और ज्योतिषी भी अपना कर्म करते हैं। लेकिन जब यह कर्म महज बिजनेस बन जाता है, तो वे लोगों की भलाई करना छोड़कर पैसा अर्जित करने में लग जाते हैं। बाबा ने कई बार ऐसे पंडितों और ज्योतिषियों की भविष्यवाणियां या कथन झूठे साबित किए हैं। उसका मकसद यह था कि, लोग अंधविश्वास से परे उठें।

यहां हम ऐसी ही तीन कहानियों का जिक्र कर रहे हैं, जो बाबा की ऐसी ही लीलाओं का बखान करती हैं। पहली कहानी है दामू अन्ना कासार की। उनकी तीन पत्नियां थीं और तीनों से उन्हें संतान नहीं थी। तमाम ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी कि, इनके यहां आंगन में कभी बच्चे की किलकारियां नहीं गूंजेंगी। निराश होकर दामू अन्ना बाबा के दर्शन को आए। उस दिन किसी भक्त ने बाबा को आम की पेटी भेंट की थी। बाबा ने सबको आम बांट दिए और तीन आम निकालकर अलग रख लिए।

मालसापति ने कहा, बाबा ये तीन आम क्यों निकाले? बाबा ने दामू की ओर इशारा करते हुए कहा, यह जो सामने बैठा है न; इसे ये तीन आम दे दो और मरने दो। बाबा के मुख से यह बात सुनकर दामू अन्ना बड़े दु:खी हुए। वे बोले, बाबा मैं तो उम्मीद लेकर आया था, आपने तो पानी फेर दिया। बाबा ने कहा, ये आम अपनी तीनों पत्नियों को खिला देना। दामू आम लेकर लौट गया। उसने घर जाकर तीनों पत्नियों को आम खिला दिए। दामू की खुशी का तब ठिकाना नहीं रहा, जब उसे मालूम चला कि उसके घर बच्चों की किलकारियां गूंजने वाली हैं। 

सावित्री रघुनाथ तेंदुलकर; जिन्होंने साई भजन माला लिखी है। इसमें बाबा के ऊपर उन्होंने 800 से ज्यादा भजन लिखे। उनके बेटे बाबू तेंदुलकर को डॉक्टरी की परीक्षा में बैठना था। तमाम ज्योतिषियों ने कह दिया कि इसकी कुंडली में डॉक्टर बनने का योग ही नहीं है। सावित्री बाबा के पास पहुंचीं। बाबा ने उनकी पीड़ा सुनकर कहा, जा अपने बेटे को बोल की डॉक्टरी की परीक्षा में बैठे। वह कैसे डॉक्टर नहीं बनता है, मैं देखता हूं। बाबा के शब्द कभी झूठे नहीं होते। बाबू तेंदुलकर ने परीक्षा उत्तीर्ण की। 
Savitribai Tendulkar


बाबा कभी-कभार विचित्र और हंसी-मजाक वाली बातें भी कर लिया करते थे। बाबा का एक भक्त बड़ा वैभवशाली था। उसने जरी की पगड़ी पहन रखी थी। हरी कनोबा नाम था उसका। बढिय़ा नई सैंडल पहनकर आया था वो। सैंडल उसने मस्जिद के बाहर उतारी। वो देख बाबा को रहा था, लेकिन ध्यान सैंडल की तरफ था। 

देखिए, धार्मिक स्थलों के बाहर से जूते-चप्पल चोरी होना आज की नहीं, वर्षों पुरानी बात है। हरी के दिमाग में था कि, कहीं उसकी नई सैंडल चोरी न हो जाएं? बाबा के दर्शन के बाद हरी जब मस्जिद से बाहर लौटा, तो वाकई में उसकी सैंडल गायब थीं। उसका दिल टूट गया। वह मन मसोसकर सड़क पार करके होटल पहुंचा। यह होटल बाबा के एक भक्त सगुण मेरू नायक का था। हरी होटल पहुंचा और खाना खाने के लिए जाने लगा, लेकिन मन से सैंडल चोरी होने की बात नहीं निकल रही थी। 

तभी उसने देखा कि, एक छोटा बच्चा डंडा लेकर खेल रहा था, जिस पर हरी की सैंडल लटकी हुई थीं। बच्चा जोर-जोर से बोल रहा था, हरी का बेटा; जरी का फेटा; हरी का बेटा; जरी का फेटा। हरी भागते हुए-से उसके पास गए और बोले, यह सैंडल मेरी है। बच्चा ने जवाब दिया, यह सैंडल तो मुझे बाबा न देते हुए कहा था कि जोर-जोर से चिल्लाना-हरी का बेटा; जरी का फेटा। और जो आदमी कहे कि उसके पिताजी का नाम क से आता है उसे यह दे देना। बच्चा फिर बोला, जरी का फेटा तो तुमने पहन रखा है अब अपने पिता का नाम बताओ? हरी ने जवाब दिया, कनोबा। बच्चे ने तुरंत सैंडल उन्हें दे दी। 

दरअसल, बाबा ने इस ड्रामे के जरिये हरी को एक संदेश दिया था। यह संदेश सबके लिए है। जब आप अपने गुरु या ईश्वर की शरण में जा रहे हैं, तो मोह-माया के फेर में न पड़ें। हरी को सबक मिल चुका था।

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