नंदादीप तब |
शिरडी में दक्षिण-पश्चिमी छोर पर स्थित लेंडीबाग के ठीक बगल में और
भगवान् दत्तात्रेय के मंदिर के ठीक सामने एक छोटे-से चबूतरे पर कोई चार-पाँच सीढ़ी ऊपर
पीपल और नीम के पेड़ों के बीच एक मढ़ियानुमा निर्माण की शक्ल के आकार में अनवरत जल
रहे छोटे से दीपक की रौशनी साई के भक्तों में आशा का संचार करती रहती है. साई के
भक्त उस दीपक, नीम और पीपल के पेड़ की परिक्रमा करते हुए अपने साई से अपनी और सबकी
खैर मांगते नहीं थकते.
साई उस दीपक से बहुत प्यार करते थे. उन्होंने धूनी
के समान कभी उसे भी बुझने नहीं दिया. जीवन के उत्तरार्ध में बाबा का क्रम था कि वे
रोज़ सवेरे और शाम को लेंडीबाग की सैर को जाते. हम सबको श्री साई सच्चरित्र के
अध्ययन से समझ में आता है कि बाबा ने हमेशा बहुत ही अनुशासन से जीवन जिया. उनकी
दिनचर्या प्रायः एक जैसी होती थी. जो बाबा ने जैसा तय कर रखा था, वैसा ही करते. लेंडी
नाम का नाला शिरडी गाँव की सीमा पर बहता और उसके किनारे बाबा ने एक बाग़ बना दिया
था. वहाँ अपने हाथों से लगाई फुलवारी को हाथों से सींचते. बाबा की मेहनत से वो जगह
बेहद ख़ूबसूरत बगीचे में तब्दील हो गयी थी. बाबा को फूलों का बेहद शौक था. शिरडी
में अपने आरंभिक दिनों में बाबा मस्जिद के पीछे वाली जगह, जहां आज समाधि मंदिर
स्थित है, में भी बागवानी करते. राहाता और नीमगाँव तक पैदल जाकर पौधे मोल लेते और
यहाँ वापस आकर अपने हाथों से उनको रोपते और सींचते. यह उनका नित्य क्रम था.
वामन तात्या नाम का एक कुम्हार रोज़ बाबा को दो
कच्चे घड़े देता जिनसे पौधों में पानी देने के बाद बाबा उन्हे नीचे रख देते और वो
घड़े फूट जाते. क्या इन घड़ों के कच्चे होने और उनके रोज़ ही फूट जाने की लीला में भी
कोई रहस्य था? मन इस ओर खिंच-सा जाता है. आखिर साई को जितना समझा है, उनकी
प्रत्येक क्रिया के पीछे कोई सोच ज़रूर रहती है हमें संस्कारित करने की. क्या हमारा
जीवन उन कच्चे घड़ों के सदृश नहीं है? क्षणभंगुर, पल में नष्ट हो जाने वाला. क्या सींचने
की क्रिया हमारे उन कर्मों के समान नहीं है जिनके लिए ही परमात्मा ने हमारा
निर्माण किया है? क्या उनका अपने कर्म करके फूट जाना इस बात को नहीं दर्शाता कि
हमें भी अपना कर्म बिना किसी लालसा के करना चाहिए और व्यर्थ ही फल की चिंता नहीं
करनी चाहिए? क्या इस पूरी क्रिया से यह सीख नहीं मिलती कि जो कार्य हमें दिया गया
है उसे पूर्ण कर हमें उस जगह से ख़ुद ही हट जाना चाहिए? बाबा की लीलाएं अनबूझ होती
हैं. सभी में सम्पूर्ण अर्थ.
बाबा के परम सेवक हाजी अब्दुल बाबा ने जीवन
पर्यंत, बाबा के समाधि लेने के पहले और उनके समाधि लेने के बाद भी नंदादीप के दीपक
को सदैव बाबा का आदेश मानते हुए प्रकाशित रखा. बाबा के समय में यह दीपक ज़मीन में
करीब एक-दो फुट नीचे रहता. मौसम की मार से बचाने के लिए इस पर तिरपाल या लोहे की
चद्दर डाल कर इसे ढंका जाता. यह अब्दुल का क्रम था कि वह रोज़ बाबा के नंदादीप पर
आने से पहले एक मटके में पानी भर कर वहाँ रख देता. पौधों को सींचने के बाद बाबा आकर
नंदादीप के पास बैठते. इस समय बाबा के नज़दीक अब्दुल के अलावा कोई और नहीं होता था.
अपने हाथों में पानी लेकर बाबा कोई मन्त्र
बुदबुदाकर या कुछ ऐसा बोलकर जो अब्दुल की समझ से परे था, चारों ओर उछाल देते थे.
दूर खड़े होकर बाबा के भक्त बाबा की यह अजीब क्रिया देखते और बाद में अब्दुल से
इसका अर्थ भी पूछते. अब बाबा से पूछने की तो किसी की हिम्मत थी नहीं. अब्दुल भी
कभी कोई ठोस उत्तर नहीं दे पाता. बाबा द्वारा बोले गए मन्त्रों के बारे में कभी भी
अब्दुल कुछ नहीं कह पाया लेकिन उसका मानना था कि ऐसा कर के बाबा अपने भक्तों पर
आने वाले संकटों को टाल देते हैं.
हक़ीक़त क्या थी यह तो सिर्फ बाबा जाने लेकिन आज
भी नंदादीप साई के भक्तों में आशा का संचार करता है. बाबा आज सशरीर नहीं हैं लेकिन
आज भी वो हैं. आज भी बाबा अपने भक्तों का हर संकट हर लेते हैं. नंदादीप में सतत
जलता वह दीपक आज भी बाबा के असंख्य भक्तों के दिल में साई नाम के दिये को प्रकाशित
करता है. अभय की रौशनी से उनका जीवन जगमगाने लगता है, रोम-रोम में साई बसने लगते
हैं. उस अभय-तत्व की ऊष्मा से बाबा के भक्त साई बनने की और एक कदम और उठा लेते हैं..
Om Sai Ram ji, Om Sai lendi Bagiya namo namah
ReplyDeleteJai sai ram
ReplyDeleteOm sai namo namah 🙏🏼
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