Friday, 14 August 2015

साईनाथ हैं मैनेजमेंट सद्गुरु



“मेरे भक्तों के घर कभी अन्न और वस्त्र का अभाव नहीं होगा.
जो अंतःकरण से मेरे पास आएगा, उसका कल्याण होगा.”

साई बाबा के कहे हुए इन शब्दों का बड़ा गहरा अर्थ है. यह समझाते हुए श्री साई अमृत कथा के मार्फ़त ‘भाईजी’ सुमीत पोंदा बताते हैं कि साई के समय-समय पर साई के भक्तों ने यह अनुभव किया है कि यह वचन पूर्णतः सत्य साबित होते हैं और भक्तगण यह स्वयं जान लेते हैं कि बाबा के बोले हुए शब्द थोथे-पोचे नहीं बल्कि सत्य होते हैं. यह वचन साई के भक्तों में साई के प्रति महत्त्व-बुद्धि को प्रगाढ़ करते हैं, साई के चरणों में आस्था को बढ़ाते हैं और साथ ही स्वयं को आत्म-बोध या आत्म-अनुभूति की ओर खेंच लाते हैं.

सच ही तो है, व्यक्ति में यदि अन्न और वस्त्र की चिंता ख़त्म हो जाती है तो वह, धीरे-धीरे ही सही, आत्मोन्नति की सीढ़ी चढ़ने लगता है. मैनेजमेंट एक्सपर्ट एब्राहम मास्लो द्वारा दी गयी और मैनेजमेंट के कोर्स में पढ़ाई जाने वाली ‘Maslow’s Hierarchy of Needs’ नाम के सिद्धांत को पढ़ाते समय मैनेजमेंट गुरु भी बताते हैं कि इंसान की मूलभूत ज़रूरतों जैसे कि रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्णता के बगैर उसकी प्रगति self-actualisation यानि आत्म-अनुभूति की ओर संभव ही नहीं है.

इन पहली और अंतिम सीढ़ी के बीच तीन और सीढ़ियाँ होती है. दूसरी सीढ़ी के रूप में सुरक्षा की आवश्यकता का उल्लेख हुआ है. यह भी साई में भक्ति पूरी करती है. साई के भक्तों ने ख़ुद ही महसूस किया है कि साई-साई का सुमिरन मात्र करने से तमाम सुरक्षा मिल जाती है और भय दूर हो जाते हैं.

तीसरी सीढ़ी पर एक इंसान को चाहिए होती है समाज में स्वीकार्यता अपने और अपने परिवार के लिए, अपने कार्यों के लिए. यहाँ भी साई कहाँ पीछे रहते हैं! साई की कृपा से जब मन में साई का उदय होना प्रारम्भ होता है तब से हमारे विचारों में जो पर्तिवर्तन आता है वह हमारे कार्यों का स्वरूप बदल देता है. कार्य सद्कार्यों में तब्दील होने लगते हैं, उनकी प्रशंसा होने लगती है और समाज में मान-सम्मान मिलने लगता है. इन्ही कार्यों के चलते परिवार को पहचान भी मिलती है.

अगली सीढ़ी पर स्वाभिमान, आत्म-विश्वास, सम्मान पाने की ललक और सम्मान देने की इच्छा, पराक्रम, इत्यादी आता है. साई के भक्तों को आत्म-सम्मान कहीं भी लेने नहीं जाना पड़ता. छोटा हो या बड़ा, साई ने सभी को हरदम, हमेशा सम्मान दिया उनका भाग्य बदल कर या कहें कि उन्हें अपनाकर बाबा ने उनकी जीवन-गति ही बदल दी.

भक्त-वत्सल सुनार और खंडोबा मंदिर के पुजारी, म्हालसापति जो कि बाबा के पहले भक्त के रूप में जाने गए, बाबा को माँ जैसा प्यार देने वाली बायाज़ामाई के बेटे तात्या पाटिल की मृत्यु हर ली, स्कूल मास्टर शामा को जो प्रतिष्ठित लोगों के हाथों जो मान-सम्मान दिलवाया, बाबा को भोजन कराने वालीं लक्ष्मीबाई शिंदे, राधाकृष्णमाई को जो सम्मान दिया, कोढ़ी भागोजी शिंदे की सेवा क़ुबूल की, नौटंकियों में अश्लील गीत लिखने वाला पुलिस का हवलदार गणपत सहस्त्रबुद्धे जो बाद में बाबा के कीर्तनकार दासगणु के नाम से जाने गए और साई बाबा संस्थान का कार्यभार सम्हाला, बड़ी माता के टीके से डरने वाले और बाद में बाबा की कृपा से असंख्य दिव्य अनुभव प्राप्त कर बाबा की ख्याति को चारों दिशाओं में फ़ैलाने वाले नानासाहेब चांदोरकर या फिर ज्ञानेश्वरी को समझने के बदले बाबा की डांट खाकर बाद में सम्हलने वाले बी.वी. देव, या फिर अहंकार को त्याग कर बाबा की कृपा प्राप्त करने वाले, श्री साई सच्चरित्र की रचना कर और श्री साई बाबा संस्थान की उचित व्यवस्था कर अमरत्व प्राप्त करने वाले गोविन्द रघुनाथ उर्फ़ अन्नासाहेब दाभोलकर, बाबा की समाधि लेने के बाद अपनी धर्म-पत्नी में भी बाबा के दर्शन करने वाले नानासाहेब निमोणकर और सबसे महत्त्वपूर्ण, शरीर की पंगुता के बदले मन की पंगुता को दूर करने की इच्छा रखने वाले ‘बावन-कसी सुवर्ण’ के रूप में जाने गए परम दानी हरी सीताराम उर्फ़ काकासाहेब दीक्षित जिन्होंने साई बाबा संस्थान को आज का स्वरुप दिया. उनकी भक्ति इस कदर महक गयी थी कि उन्हें आत्म-साक्षात्कार भी हो गया था.  

ये तो उनमें रहे जो बाबा के समकालीन थे. उनके समाधि लेने के बाद तो हमारे और आपके जैसे साई की कृपा-प्राप्त लोगों के चलते ऐसी गिनती बढ़ती ही चली जाएगी ऐसे भक्तों की जिनको बाबा ने पराक्रम के रास्ते पर डाल, आत्म-सम्मान से सराबोर कर, सम्मानित कर, उनकी आत्म-अनुभूति की राह प्रशस्त की.
    
यह बात तो मैनेजमेंट का सिद्धांत की है लेकिन बाबा ने यह सिद्धांत वर्षों पहले बिना कुछ औपचारिक शिक्षा लिए और बिना किसी मैनेजमेंट डिग्री के न सिर्फ समझ लिया था बल्कि इसको अपने भक्तों पर लागू कर उनका जीवन भी संवार दिया. उन्हें न सिर्फ जीवन के सर्वोच्च शिखर पर ले गए बल्कि साधारण से समझ आने वाले लोगों को उन्होंने अमरत्व भी प्रदान कर दिया है.

ज़रुरत है साई नाम तो आत्मसात कर लेने की जिनके नाम-स्मरण से ही जीवन की दिशा और गति बदलने लगती है. साई तो हुए ही इसलिए हैं कि हम सबको आत्म-बोध की कठिन राह पर आसानी से निकाल के जाएँ. वो तो एक बहता झरना है. चुल्लू में भर कर उस अमृत को हमें पीना होगा.

श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु. शुभं भवतु.

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