श्री साई अमृत कथा में बाबा की बातें करते हुए कथा के माध्यम सुमीत पोंदा ‘भाईजी’ साई बाबा के जीवन चरित्र पर आधारित घटनाओं का
उल्लेख करते हुए बताते हैं कि जीवात्मा के रूप में जन्म लेना अपने आप में हमारे
पुण्यों का फल है। मानव जन्म तो बहुत ही अनमोल है। बहुत यत्न करने के बाद यह जन्म
मिलता है। मानव के रूप में
जन्म मिलने पर यह देह मिलती है जो अपने आप में अनूठी है और ईश्वर की अनुपम कृति है।
दाभोलकरजी ने श्री साई
सच्चरित्र में उल्लेख किया है कि भूख, डर, निद्रा और अपने वंश को आगे बढ़ाने की
क्रिया, यह चार गुण सभी जीवों में एक सरीखे होते हैं। सोचने-समझने की शक्ति
एकमात्र गुण है जो मानव जीवन को बाक़ी सारे जीवों से अलग करता है। इसके चलते यह देह
ईश्वर की अनुपम भेंट बन जाती है। इसका सदुपयोग और दुरुपयोग, दोनों ही हमारे हाथ
में है और हमारी मर्ज़ी पर निर्भर करता है। इसका सदुपयोग ईश्वर के प्रति हमारी
कृतज्ञता और दुरुपयोग, हमारी कृतघ्नता दर्शाता है। जिस देह को हम अपनी बपौती मान
कर इस्तेमाल करते हैं, वह दरअसल, ईश्वर की अमानत है हमारे पास। इसी के ज़रिये हम
अपने पूर्व कर्मों को भोगते हैं। यही ईश्वर प्राप्ति का साधन है लेकिन हम इसे अपने
आप में भोग की वस्तु समझ लेते हैं और स्वयं को दुखी करते हैं।
इस शरीर को अच्छाई
में, परमार्थ के कामों में लगाना, हमारी सोच पर निर्भर करता है। हमारी सोच हमारी
इच्छाओं और वासनाओं पर निर्भर करती है। हमारी इच्छाएँ हमारे भावों पर टिकी होती
हैं और भाव संस्कारों पर। यह संस्कार इस जन्म के भी हो सकते हैं और पूर्व जन्मों
के भी। यह संस्कार कोई चमत्कार भी डाल सकते हैं और हमारे माता-पिता, संगी-साथी भी।
अगर हम अच्छी और ग़लत आदतों में से चयन करते समय, ग़लत को पकड़ लेते हैं तो हम मान
सकते है कि हमारे संस्कार डिग रहे हैं क्योंकि हमारा मूल स्वरुप तो अच्छाई का ही
है। बुरे तो हम बन जाते हैं।
हमारे सारे कर्म जो कि हमारे
प्रारब्ध का निर्माण करते हैं, भाग्य को लिखते हैं, वे सारे ही इसी शरीर के माध्यम
से होते हैं।
स्वयं बाबा ने अपना पूरा शरीर
ईश्वर की सेवा में लगा दिया था। रात में सोते समय वे अपने पहले भक्त म्हालसापति को
कहकर सोते कि म्हालसापति का हाथ उनके ह्रदय पर रखा रहना चाहिए ये देखने के लिए कि
कहीं उनकी प्रत्येक श्वांस के साथ चलने वाला भगवत-स्मरण या अल्लाह का नाम-रटन बंद
तो नहीं हो गया है!
साई सच्चरित्र में उल्लेख आता है कि बाबा एक बार एक
शराबी के सपने में आये और उसकी छाती पर चढ़ गए। वो तब तक नहीं उतरे जब तक उसने शराब
के सेवन से तौबा नहीं कर ली। सच ही तो है, पहले इंसान शराब को पीता है, फिर शराब
इन्सान को पीती है।
सट्टा लगाना, खेल में या किसी वास्तु का, भी इस काया
का दुरुपयोग है। महाभारत इसकी परिणीति के रूप में सामने आया। दामू अन्ना कासार का
किस्सा साई सच्चरित्र में आता है। वो पहले रुई पर और फिर अनाज के दाम पर अपनी बाज़ी, जो एक प्रकार का
सट्टा ही थी, लगाना चाहता था। बाबा से अनुमति मांगी। धन का घात शरीर पर पहले असर करता है। बाबा ने स्पष्ट
मना कर दिया और उसे परिणाम देख समझ में भी आ गया कि बाबा ने उसे अनिष्ट से बचा
लिया था।
एक आलसी किसान था जो ढेर सारी ज़मीन होते हुए भी गरीबी
में जी रहा था। बाबा ने एक दिन उसे बुलाकर कहा कि उन्हें सपना आया है कि उसकी ज़मीन
में ख़ज़ाना गड़ा है। उन्होंने उस किसान को सलाह दी कि उसे दायें से बाएं खेत जोतना
चाहिए। उसने बाबा का कहा माना लेकिन उसे ख़ज़ाना नहीं मिला। बाबा के पास गया। बाबा
ने उसे कहा कि अब उसे ऊपर से नीचे खेत को जोतना चाहिए। उसने वही किया लेकिन नतीजा
वही। अब बाबा ने उसे एक बोरा गेहूं देकर कहा कि उसमें बो दे। उसे बाबा की सीख मिल
गयी थी कि शरीर को परिश्रम में लगाये बिना
कोई ख़ज़ाना मिलता नहीं है।
एक और किस्सा है, श्री साई सच्चरित्र में। श्रीमान
आम्बडेकर का। दीनता में जीवन-यापन करते हुए उसने शिर्डी आकर कुँए में कूद कर
इहलीला समाप्त करने की सोची। कुँए की मुंडेर पर बैठ कूदने को हुआ तो वहाँ से सगुण
मेरुनायक का निकलना हुआ जिनके पास अक्कलकोट स्वामी की जीवनी थी। उसने आम्बडेकर को,
उसकी मंशा जाने बिना, यह किताब पढ़ने को दे दी। उसने जहाँ जीवनी खोली, उसी पृष्ठ पर
एक व्यक्ति का उल्लेख निकला जो अपनी देह को समाप्त करने के उद्देश्य से स्वामीजी
के पास आया था और स्वामीजी ने उसे कैसे बचा लिया था। आम्बडेकर को समझ में आ गया कि
बाबा की कृपा से ही उसे यह संकेत मिला है कि वह इस देह को व्यर्थ न करे। बाबा के
आशीर्वाद से देखते ही देखते आम्बडेकर की स्थिति में ज़बरदस्त सुधार आ गया और उसने
सामुद्रिक ज्योतिष के माध्यम से बहुत धन कमाया।
समय का चरित्र है कि वह बदलेगा। बुरे समय में अपने देह
को कष्ट देने से अच्छा है कि उसे साई की भक्ति में लगाया जाए। यही इस देह का काम
भी है। बुरा समय जल्दी ही करवट ले लेता है। इस देह को संभाल कर रखने में ही साई की सच्ची पूजा है। देह साई को पाने का माध्यम है। इसे व्यर्थ काम और मद में भटकाना, इसका
अपमान है।
बाबा भली कर रहे।।
श्री
सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु। शुभं भवतु।