कहते हैं, जिसने संत के हाथ की मार खा ली, उसका जीवन संवर गया. उसे हमारे संत साई
अपने रंग में ऐसे रंग लेते हैं कि उसका रंग ही बदल जाता है. लड़खड़ा के चलने वाला सम्हल
जाता है. रास्ते के पत्थर को दाम मिल जाता है. टिमटिमा के जलने वाले दीपक को नाम
और बिन मक़सद के जीवन को काम मिल जाता है. साई का नाम लेने और ध्यान करने से गुम
राहें मिल जाती हैं और अँधेरी राहों में रौशनी मिल जाती है. श्री साई
अमृत कथा में
बाबा की बातें
करते हुए कथा
के माध्यम सुमीत
पोंदा ‘भाईजी’
साई बाबा के
जीवन चरित्र पर
आधारित और श्री साईं सच्चरित्र में वर्णित घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि कई
दफे साई बाबा के ग़ुस्से का, उनके द्वारा अपशब्द बोले जाने का ज़िक्र भी आया है.
एकादशी के दिन साई बाबा द्वारा वमन की हुई प्याज़ खाने पर तो कुशाभाव की पिटाई की
बात भी सामने आती है.
लोग अकसर पूछते हैं कि
क्या एक संत को ऐसे क्रोध करना शोभा देता है! क्या संत वो नहीं है जिसने अपने
मनोभावों पर नियंत्रण पा लिया हो? ऐसा ही है लेकिन किसी भी संत के अंतःकरण में
विश्व के कल्याण की भावना सर्वोपरि होती है. अगर श्रीमद् भागवत महापुराण की बात माने
तो ये भी उतना ही सटीक है कि इस जगत के कल्याण हेतु संतों के रूप में भगवान् ही
मानव अवतार लेकर आते हैं. जब मानव अवतार लेकर आये हैं तो क्रोधरूपी तमोगुण उनका
स्वाभाविक आभूषण है.
ऐसा ही क्रोध साई का
है. बिलकुल समुन्दर जैसा. उथल-पुथल सिर्फ लहरों तक सीमित और नीचे गहराई में अथाह
शांति जिसमें जलचर स्वच्छंद रूप से विचरण करते हैं. उपर से तो कई दफे क्रोध करते
दिखते लेकिन अन्दर ही अन्दर वे एकदम शांत और प्रेम से भरपूर थे. उनके ह्रदय में
सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने भक्तों, बच्चों के लिए प्रेम रहता.
हाजी सिद्दीक फालके का
हज करने सम्बन्धी अभिमान तोड़ने के लिए बाबा द्वारा किया गया क्रोध, बाबा द्वारा
उनको संतरे भेंट करने में परिणित हुआ. मेघा के ऊपर किया क्रोध, उसे बाबा की ओर खींचता
गया और वो बाबा के अभिन्न भक्तों में सम्मिलित हो गया. उसके शव पर बाबा द्वारा
अभूतपूर्व शोक प्रगट करने के साथ मेघा की मृत्यु सार्थक हो गयी. अपनी अनुमति के
बगैर मस्जिद में नानासाहेब चांदोरकर और काकासाहेब दीक्षित द्वारा काका महाजनी को
पुनर्निर्माण के कार्य में लगाया जाना भी बाबा को नागवार गुज़रा. उन्होंने उसी समय
न सिर्फ़ पुनर्निर्माण में प्रयुक्त खंभे उखाड़ कर फ़ेंक दिए बल्कि तात्या की पगड़ी भी
धूनी को समर्पित कर दी. लेकिन इसी सब के दौरान काका महाजनी को मूंगफली खिलाते हुए
उन्होंने काका का उदर रोग ठीक कर दिया. बाद में अपने हाथों से तात्या को नयी पगड़ी
भी पहनाई. दामूअन्ना कासार को जब बाबा ने आम दिलवाते हुए ग़ुस्से में कहा कि खाकर
मरने दो इसको, तब वो संततिहीन दामू के लिए संतति का वरदान लेकर आया. लोभवश अपने
आंचल में बाबा द्वारा अपने हाथों से पीसा आटा लेकर उठने को हुई महिलाओं पर बाबा का
क्रोध, उस आटे में शिर्डी को प्लेग के प्रकोप से बचाने की लीला के रूप में समझ
आया.
मर्यादा छोड़ चुके
बादलों पर बाबा की गर्जना से उनका मूल स्वरुप में आ जाना और धूनी की अल्हड़, बेक़ाबू
लपटों को सटके की मार से ठीक कर देना और शिर्डी-निवासियों को उनके प्रकोप से बचाना
भी साई के प्यार-भरे ग़ुस्से की ही एक बानगी है. एकादशी पर प्याज़ का सेवन न करने
सम्बन्धी कुशभाव के अंधविश्वास को अपनी मार से ठीक करना और उसे यह वरदान देना कि
उसके हाथों से कल्याणकारी उदी का प्रवाह निरंतर होता रहेगा, भी साई के माँ स्वरुप
को ही दिखाता है.
माँ के ग़ुस्से से
बच्चे का हमेशा कल्याण ही होता है. साई को जो गुस्सा आता था वह दरअसल किसी व्यक्ति
विशेष पर न होकर भक्तों की कमजोरियों पर, उनकी दुश्प्रुवृत्तियों पर और कुविचारों
पर होता था. साई के ग़ुस्से से हमेशा उनके भक्तों को फ़ायदा ही हुआ है क्योंकि इससे
उनके दोषों का शमन अनजाने ही हो जाता था. साई के क्रोध से उनके भक्तों का ही भाग्योदय
होता है. इसलिए जब यह लगे कि परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं, ऐसे समय में मानना
चाहिए कि साई का क्रोध हमारी परीक्षा ले रहा है, राह खोल रहा है कि हम अपने दोषों
का शमन कर लें और साई से सन्निकटता पा लें. उसमें छिपे प्यार से हमारा भाग्योदय
सन्निकट है.
बाबा भली कर रहे।।
Om Sai Ram. . . . .
ReplyDeleteOm Sai Ram. . . . .
ReplyDeleteOnly Sai Sai Sai
ReplyDeleteOm sai ram sab ka Malik ek
ReplyDeleteOm sai ram sab ka Malik ek
ReplyDeleteOm sai ram
ReplyDeleteOm sai ram
ReplyDeleteॐ साईं राम
ReplyDeleteOm sai ram
ReplyDeleteॐ श्री साई राम जी
ReplyDelete