श्री साई
अमृत कथा में बाबा के प्राकट्य के बारे में उल्लेख
हुए, सुमीतभाई पोंदा ‘भाईजी’ बताते
हैं कि सभी को विदित है कि साई
बाबा को शिर्डी में पहली बार एक नौजवान युवक के रूप में गाँव के नीम के पेड़ के
नीचे गहन ध्यान में बैठे हुए नाना चोपदार की माँ ने देखा था.
इसी नीम के पेड़ के नीचे साई ने अपने गुरु का स्थान बताया तो
कभी यह भी बताया कि कैसे उन्होंने 12 वर्ष इस पेड़ के तले तपस्या की है. कभी
उन्होंने लोगों को यह भी बताया कि उस नीम के पेड़ के नीचे एक सुरंग है जिसका दूसरा
छोर चावड़ी के पास कहीं निकलता है. शिर्डी गाँव में एक उत्सव के दौरान किसी को
भगवान खंडोबा का संचार हुआ और इस पेड़ के बारे में गाँव वासियों ने जिज्ञासा ज़ाहिर
की और उसके कहने पर जब उस स्थान की खुदाई की गयी तो नीचे एक तहख़ाना मिला जिसमे
दीपक जल रहे थे, गौमुखी और कुछ मालाएं भी वहाँ पर मिलीं. साई बाबा, जिनका नामकरण
इस दौरान हुआ नहीं था, ने इस बात की पुष्टि की कि यहाँ पर उनके गुरु का स्थान है
और उनके सम्मान में बेहतर होगा कि उस स्थान को पुनः बंद कर दिया जाए. इस तरह खुदे
हुए स्थान को पुनः बंद करवा दिया गया.
कुछ सालों बाद इसी नीम की डाल को काटने के लिए जब एक बच्चा
इस पेड़ पर चढ़ कर गिर, काल का ग्रास बन गया तब दूर बाबा ने मस्जिद में ह्रदय-विदारक
रूप से शंख बजाया था जिसे इस बात का संकेत माना गया कि इस पवित्र पेड़ की अस्मिता
बनी रहनी चाहिए.
वहीँ दूसरी ओर, कुछ और सालों
बाद, बाबा की आज्ञा से भक्तों के रहने के लिए वाड़ा बनवाने के लिए, इसी पेड़ से सटकर
हरि विनायक साठे ने ज़मीन ख़रीदी. जब इस वाड़े का निर्माण शुरू हुआ तब इस पेड़ की एक
डाल निर्माण में आड़े आ रही थी. तब बाबा से इस बाबत् सुझाव माँगा गया तो बाबा ने अपनी
चिरपरिचित शैली में बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि माँ के पेट में बच्चा आड़ा
हो जाए तो क्या करेंगे! बाबा की बात लोगों की तुरंत समझ में आ गयी और सम्मानरूप एक
छोटी-सी पूजा कर उस डाल को काट दिया गया. इस तरह इसी नीम के पेड़ की छाँव में शिर्डी
में भक्तों की सुविधा लिए पहले वाड़े का निर्माण हुआ. यह वाड़ा साठे वाड़ा कहलाया. हाल ही के वर्षों में, 1997 और 1999 के बीच, हुए
समाधि मंदिर परिसर के पुनर्निर्माण में इस वाड़े को जर्जर अवस्था में होने के कारण हटा
दिया गया है.
आज भी इस नीम के पेड़ के तले एक छोटी-सी मढ़िया की शक्ल में
ऊपर से सोने से मढ़े हुए धूसर रंग के पत्थर से बने छोटे-से मंदिर में बाबा का मूल
चित्र रखा हुआ है जिसके आगे वही शिवलिंग है जिसे बाबा ने शिव-भक्त मेघा को दिया था.
बाबा को यह शिवलिंग पुणे के एक भक्त ने दिया था. गुरुस्थान में यह शिवलिंग मेघा की बाबा के प्रति गुरु-भक्ति के शाश्वत
प्रतीक के रूप में इस गुरुस्थान को प्रदीप्त करता है. इसी के आगे बाबा के
प्रथम शिर्डी आगमन के प्रतीक स्वरुप, डॉ. रामराव कोठारे द्वारा बनवाई गयी
पादुकाएँ, जो कि श्रावणी पूर्णिमा, शक संवत 1834 यानि मंगलवार, 27 अगस्त, 1912 के
दिन स्थापित की गयी थी, भी रखी गयी हैं.
इसके ठीक सामने, एक धूनी-पात्र है जिसमें प्रत्येक गुरुवार
और शुक्रवार को प्रज्ज्वलित अग्नि में भक्त लोभान जलाते हैं. वैज्ञानिक दृष्टि से
लोभान से उठने वाली भभक से वातावरण में व्याप्त जीवाणु समाप्त हो जाते है और
वातावरण शुद्ध हो जाता है. बाबा ने भी कहा था कि जो भी भक्त इस स्थान पर गुरुवार
और शुक्रवार की शाम लोभान जलाएगा, उसके और उसके परिवार के सारे कष्ट कट जायेंगे.
इस पवित्र नीम के पेड़ के इर्द-गिर्द परिक्रमा का पथ है जिस
पर चलकर भक्त, साई की उपस्थिति को महसूस करते हैं. साई के गुरु-स्वरुप को सिद्ध
करता है यह पवित्र पेड़ जिसके पत्ते मीठे हैं! क्या कारण है कि कड़वी तासीर का होते
हुए भी इस नीम के पत्ते मीठे हैं?
विज्ञान कहता हैं कि पेड़ों में भी प्राण होते हैं. हमारे
दर्शन में तो पेड़ों को देवता माना गया है. उनकी पूजा की जाती है. भारत के महान
वैज्ञानिक जे. सी. बोस ने पेड़ों के स्वभाव का अध्ययन करने के लिए क्रेस्कोग्राफ़
नाम का उपकरण बनाया जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित भी किया गया. इस
उपकरण से उन्होंने खोज की थी कि पेड़ों और पौधों के स्वभाव और बर्ताव में, उनके
समीप वातावरण का असर इंसानों की तरह ही पड़ता है. कोई आश्चर्य नहीं कि साई बाबा
जैसे संत की 12 वर्षों की तपस्या का असर इस नीम के पेड़ पर इस तरह से पड़ा हो कि वह
कड़वेपन का अपना मूल स्वभाव छोड़ कर मीठा हो गया हो!
क्या यह नीम का पेड़ हमारे मन के जैसा नहीं है जिसमें उठने
वाले, काम, क्रोध, मद, इर्ष्या, लोभ से सने मलीन विचार उस पर उगने वाले उन कड़वे
पत्तों के जैसे ही हैं! क्या हम अपने उस कड़वे मन की छाँव में साई को नहीं बिठा
सकते? जब एक पेड़ उस साई की पवित्र उपस्थिति से अपना चरित्र छोड़ कर मीठा हो सकता है
तो क्या साई के स्पर्श और आगमन मात्र से ही हमारे विचारों का स्वरुप बदलना नहीं
शुरू होगा? ज़रा साई को अपने मन में बैठने तो दो, उन्हें ध्यान तो लगाने दो. तुम भी
मीठे हो जाओगे.
बाबा भली कर रहे।।
श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु। शुभं भवतु।
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