Saturday 27 September 2014

साई ही क्यों..

यह प्रश्न कुछ लोग उठाते हैं. साई ही क्यों? क्या कारण है कि साई के श्रद्धलुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है? उनके दर्शन लेने के लिए हमारी सोच से भी लंबी कतारें क्यों लगती है? क्यों कर यह होता है कि लोग कहते हैं कि साई के दर से कोई ख़ाली हाथ नहीं लौटता, जो मांगो वह मिल ही जाता है? सच ही तो है! साई के दर पर रोज़ अनगिनत श्रद्धलुओं की मुरादें पूरी होती हैं. साई में विश्वास रखने वालों को चमत्कार ढूँढने कहीं जाना नहीं पड़ता. साई के चमत्कारों से हम सभी चमत्कृत हैं.

जीवन में जो अप्रत्याशित और असंभावी होता है, हम उसे चमत्कार कहते हैं. जिसके बारे में कभी हमने सोचा नहीं.. और यदि सोचा भी तो, उसे कई कारणों से साकार नहीं कर पाए अन्यथा साधारण शब्दों में कहें तो, परिस्थितियों से पार नहीं पा सके.. और जो हम अपने जीवन में साक्षात नहीं कर पाए, अगर कोई दूसरा उसे करके दिखाता है, तो वो हमारे लिए चमत्कार हो जाता है. हमें वह व्यक्ति असाधारण समझ में आने लगता है. हम उसे पूजने लगते हैं. उसकी कहीं बातों और सलाह-मश्वरों पर अमल करने लगते हैं .... और हमें करना भी चाहिए, अगर उस व्यक्तित्व के चमत्कार समाज को एक नई दिशा देते हों, समाज के हित में हों, हमारी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाते हों, जो संसार को संस्कारित करने की पहल करते हों.


साईबाबा ने वही चमत्कार किए. उनका आशीर्वाद, सान्निध्य हमें वहीं सुखद अनुभूति देता है, जैसी हमें अपने पुरखों के स्मरण के दौरान मिलती है. बाबा का सम्पूर्ण व्यक्तित्व चामत्कारिक है. उनके भीतर एक चुंबकीय प्रभाव है, जो हमें खींच लेता है. बाबा का चुंबकीय प्रभाव हमारे मन में विद्युत पैदा करता है. सकारात्मक ऊर्जा का ऐसा प्रवाह दौड़ाता है, जो हमारे तंत्रिका तंत्र को अच्छे कर्मों के लिए उद्देलित करता है. मन को शांत करता है, तन को स्फूर्ति देता है.

सारे चमत्कारों की जनक सकारात्मक ऊर्जा है, जो हरेक बंदे के अंदर ही बसी है. साई भी तो यही कहते हैं. लेकिन उस ऊर्जा का प्रयोग करना एक कला है और अपने अंदर की इस कला को परखना एक चुनौती. बाबा का सान्निध्य हमें इसी कला में पारंगत करता है. हमें इस चुनौती के लिए तैयार करता है. साई हमेशा ही कहते कि ‘ईश्वर आहे..’ अर्थात ईश्वर हैं – हमारे अंदर ही बसता है. उसे कहीं और ढूँढना उस मृग के जैसा है जो कस्तूरी नाभि में लिए उसकी सुगंध से मोहित हो कर वन-वन दौड़ता फिरता है.

चमत्कार को सभी नमस्कार करते हैं. लेकिन बाबा, महासमाधी लेने के लगभग ९६ वर्षों बाद, आज भी जो चमत्कार करते आ रहे हैं, उन्हें सिर्फ सलाम ठोंककर, हाथ जोड़कर, अपने-अपने रास्ते बढ़ लेना काफी नहीं है. उन चमत्कारों के पीछे छिपे मकसद को जानना-पहचानना और उन्हें आत्मसात करना अत्यंत आवश्यक है, तभी हम स्वयं को बदल सकते हैं, समाज में बदलाव लाने की बात सोच सकते हैं, दुनिया को बदलने की पहल कर सकते हैं. यही साई को समस्त अवतारों से अलग करता है. बिना कोई भी अस्त्र-शस्त्र उठाये, साई लोगों को बदल रहे हैं.

जहां तक मैंने देखा और महसूस किया है, साई के नाम में वो अदम्य शक्ति है, जिसके स्मरण मात्र से हमारे अंदर अद्भुत शक्ति का संचार होता है और इस शक्ति के उदय होने के साथ-साथ एक ‘अभयकारी’ भाव उत्पन्न होने लगता है. मानो निरंकुश, दिशारहित, डरे-सहमे जीवन को एक ठौर-सा मिल जाता है. साई की भक्ति से वो भाव उत्पन्न होता है जिसमे दु:ख आपको दु:खी नहीं करता. अपमान होने पर आप अपमानित नहीं होते. कहीं कुछ खोने का डर नहीं होता. सब-कुछ होते हुए भी आप अभिमानी नहीं होते. साई हैं तो!

बाबा ने चोलकर से कहा भी तो था, “यदि तुम श्रद्धापूर्वक मेरे सामने हाथ फैलाओगे तो मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा. यद्यपि मैं शरीर से यहाँ हूँ, परन्तु मुझे सात समुद्रों के पार घटित होने वाली घटनाओं का ज्ञान है. मैं तुम्हारे ह्रदय में विराजित, तुम्हारे अंतरस्थ ही हूँ..”

बाबा के इस आश्वासन को हम कई दफे भूल जाते हैं. गुज़रे हुए कल का दु:ख या शोक, हमें सुखी नहीं होने देता. जो आज हमारे पास है, उसका मोह, आनंद नहीं लेने देता और आने वाले कल का भय, जो आज है, उसके छूट जाने का भय, हमारे मन को शान्ति नहीं होने देता. साई में विश्वास हमें इस बात का अहसास कराता है कि बीते हुए कल का शोक करने से कुछ हासिल नहीं होता क्योंकि वो हमारी पकड़ से बाहर हो चुका है. जो बीत गई सो बात गई. तब अनुभूति होती है नित्य-सुख की.

साई में निष्ठा हमें यह बोध कराती है कि अभी जो हमारा है, उसमें मोह रखने से हम अपने आप को बाँध लेते हैं और वैसी चिड़िया, जिसके पंख क़तर दिए गए हों, वैसा महसूस करने लगते हैं. उड़ नहीं पाते और आनंद का अनुभव नहीं कर पाते. तब अनुभव करते हैं हम, नित्य-आनंद का.

हमारे पास जो है, वह सब ईश(साई)-कृपा से मिला है, हमारे अच्छे कर्मों को साई ने नवाज़ा है. यह सब छिन भी सकता है, यह डर हमें शांति में जीने नहीं देता. साई में विश्वास यह समझाता है कि नित्य अच्छे कर्म करने से और बुरे कर्मों से दूर रहने से साई-कृपा में स्थायित्व प्राप्त होता है. यह नित्य-शांति का मार्ग खोल कर रख देता है.

साई की कृपा पाने से भूत, वर्तमान और भविष्य का संताप, उनसे जुडी संवेदनाएं, तकलीफें और अनिश्चय का भेद मिट जाता है और सभी कुछ ‘तत्क्षण’ (अभी और यहाँ) में बदल जाता है और हमें ‘नित्य’ की अनुभूती होने लगती है. साई नित्य, निरंतर, लगातार हैं. इसी नित्य-सुख, नित्य-आनंद और नित्य-शान्ति का नाम साई है.

ज़रा सोचें! ब्रह्म और भ्रम में दोनों मिलते-जुलते शब्द हैं. जीवन में जब (ब्रह्म)साई-नाम की पहली किरण फूटती है, तो वो हमारे सारे भ्रम दूर कर देती है. भ्रम यानी अंधकार. वो अंधकार, जो हमारे मन-मस्तिष्क में घर किए बैठा रहता है.

साई हमें बदल डालते हैं. उनके नाम में ही सुख, आनंद और शान्ति मिलने लगती है. साई ने कहा भी तो है, “मेरे पास जो भी जो कुछ भी मांगने आता है, मैं उसे वह सब देता हूँ और तब तक देता रहता हूँ जब तक वह, वो सब कुछ न मांगने लगे, जो मैं उसे देना चाहता हूँ.” और साई में प्रीति हमें शैने:-शैने: अपने अंदर साई के जागृत होने का अहसास कराने लगती है. हमारे पापों को साई, पश्चाताप की धूनी में जला देते हैं, हमारे असंवेदनशील मानस को उसी में पिघला देते हैं और फिर हमें कुंदन की तरह निखार देते हैं.

आदमी सोचता कुछ है, करता कुछ और नज़र आता है, होता कुछ और है और तब, समझ में कुछ और आता है.... यह साई है. हमारे अंदर का साई हमें वह स्वरुप दे देता है जब हम अपने आप को नए लगने लगते हैं. हमारे अंदर का बदलाव भी साई ही है. इसी विश्वास के सहारे हम वो सब कुछ करने लगते हैं, जो कभी हमने सोचा भी नहीं था. और हम अचरज से भर उठते हैं. यह सब साई को अपने अंदर खोजने पर मिलता है.
ढूँढा सारे जहां में, तेरा पता नहीं.
और जब पता मिला है तेरा,
तो मेरा पता नहीं..

साई को अपने अंदर खोजने और जागृत करने का भास ‘स्मारये न तू शिक्षये’ जैसा होता है यानि हमारे अंदर जो कुछ भी है, उसका सिर्फ हमें स्मरण कराना साई का एकमात्र उद्देश्य है न कि उसकी शिक्षा देना.

चाहे हमने पढ़ा हो या नहीं, किसी ने हमें इस बात के संस्कार दिए हों या नहीं, हम सभी को पता होता है कि झूठ नहीं बोलना है; किसी को दु:ख नहीं देना है; किसी से कपट नहीं करना चाहिए; एक-न-एक दिन मरना ही है. यह सब कोई नयी बातें नहीं हैं. यह सब कुछ हमें पता ही है पर जीवन से दो-दो हाथ करने में, दूसरों को नीचा दिखने में, अपने आप को वैसा दिखाने में, जैसे हम हैं ही नहीं...हम जीवन के मूल, आधारभूत सत्य को याद नहीं रखते, भूल जाते हैं. समय-समय पर कोई हमें इसका निरंतर आभास कराता रहे, वो हमारे अंदर का साई है.


साई की विशिष्टता ही यही है कि वे सहज, सुलभ और सर्वस्व हैं. उन्होंने ईश्वर को, बिना किसी ढकोसले के, आम आदमी के लिए सुलभ कर दिया है. और मज़े की बात तो यही है कि साई की तलाश करते-करते इंसान अपने आप को ही ढूंढ लेता है. अध्यात्म जैसे गूढ़ रहस्य साई की भक्ति से एकदम आसानी से खुल जाते हैं. कोई ध्यान, समाधि, इत्यादी की ज़रूरत ही नहीं होती है. यहाँ तक कि साई नाम जपना भी ज़रूरी नहीं है. सिर्फ उसके नाम का स्मरण ही हमें अपनी मुश्किलों से निजात दिला देता है और हम जैसे लोग सिर्फ उसी के सहारे परम सत्य की खोज कर लेते है, ईश्वर को पा लेते हैं.

ज्ञान, भक्ति, सुचरित्र, वैराग्य, साधना, न्याय, अध्यात्म और सरलता का संगम हैं साई. साई का यही सुलभ रूप सबके मन में उतर जाता है जैसे मेरे मन में उतर गया.

मुझे याद नहीं कि मैंने साई से कितना कुछ माँगा है लेकिन इतना ज़रूर याद है कि मैंने उससे जो भी माँगा उसने बेहिचक मुझे दिया है. मैं मांगते-मांगते थक गया लेकिन वो देते-देते नहीं थका. एक अरसा हो गया है जब से मैंने उससे कुछ भी नहीं माँगा है और मज़े की बात तो यह है कि मुझे किसी चीज़ की कमी नहीं आने दी है और मुझे पूरा विश्वास है कि वो आने भी नहीं देगा. इस मांगने और पाने के चक्कर में, कब मैं साई में समा गया और साई मुझमें, यह पता ही नहीं चला. मेरे सारे कर्म उसके नाम, उसके चरणों में समर्पित होते चले गए. अब वही मेरे जीवन को दिशा देता है और मेरे लिए सारे निर्णय लेता है. वही जानता है कि मेरे लिए क्या अच्छा है. इससे आसान जीवन में क्या होगा? इसीलिए साई ..सिर्फ साई..


श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु. शुभं भवतु..
सुमीत पोंदा ‘भाईजी’
(लेखक श्री साई अमृत कथा के माध्यम हैं)

6 comments:

  1. I too feel the divine presence of Sai in me...
    Submission of Self to lotus feet of Sai..

    Simple narration of yours will surely help people to feel the solace...

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  2. I too feel the divine presence of Sai in me...
    Submission of Self to lotus feet of Sai..

    Simple narration of yours will surely help people to feel the solace...

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  3. सबका मालिक एक

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  4. सबका मालिक एक

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