Tuesday 27 October 2015

मानव देह है अनमोल


श्री साई अमृत कथा में बाबा की बातें करते हुए कथा के माध्यम सुमीत पोंदा भाईजी साई बाबा के जीवन चरित्र पर आधारित घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि जीवात्मा के रूप में जन्म लेना अपने आप में हमारे पुण्यों का फल है। मानव जन्म तो बहुत ही अनमोल है। बहुत यत्न करने के बाद यह जन्म मिलता है। मानव के रूप में जन्म मिलने पर यह देह मिलती है जो अपने आप में अनूठी है और ईश्वर की अनुपम कृति है।


दाभोलकरजी ने श्री साई सच्चरित्र में उल्लेख किया है कि भूख, डर, निद्रा और अपने वंश को आगे बढ़ाने की क्रिया, यह चार गुण सभी जीवों में एक सरीखे होते हैं। सोचने-समझने की शक्ति एकमात्र गुण है जो मानव जीवन को बाक़ी सारे जीवों से अलग करता है। इसके चलते यह देह ईश्वर की अनुपम भेंट बन जाती है। इसका सदुपयोग और दुरुपयोग, दोनों ही हमारे हाथ में है और हमारी मर्ज़ी पर निर्भर करता है। इसका सदुपयोग ईश्वर के प्रति हमारी कृतज्ञता और दुरुपयोग, हमारी कृतघ्नता दर्शाता है। जिस देह को हम अपनी बपौती मान कर इस्तेमाल करते हैं, वह दरअसल, ईश्वर की अमानत है हमारे पास। इसी के ज़रिये हम अपने पूर्व कर्मों को भोगते हैं। यही ईश्वर प्राप्ति का साधन है लेकिन हम इसे अपने आप में भोग की वस्तु समझ लेते हैं और स्वयं को दुखी करते हैं।

इस शरीर को अच्छाई में, परमार्थ के कामों में लगाना, हमारी सोच पर निर्भर करता है। हमारी सोच हमारी इच्छाओं और वासनाओं पर निर्भर करती है। हमारी इच्छाएँ हमारे भावों पर टिकी होती हैं और भाव संस्कारों पर। यह संस्कार इस जन्म के भी हो सकते हैं और पूर्व जन्मों के भी। यह संस्कार कोई चमत्कार भी डाल सकते हैं और हमारे माता-पिता, संगी-साथी भी। अगर हम अच्छी और ग़लत आदतों में से चयन करते समय, ग़लत को पकड़ लेते हैं तो हम मान सकते है कि हमारे संस्कार डिग रहे हैं क्योंकि हमारा मूल स्वरुप तो अच्छाई का ही है। बुरे तो हम बन जाते हैं।

हमारे सारे कर्म जो कि हमारे प्रारब्ध का निर्माण करते हैं, भाग्य को लिखते हैं, वे सारे ही इसी शरीर के माध्यम से होते हैं।



स्वयं बाबा ने अपना पूरा शरीर ईश्वर की सेवा में लगा दिया था। रात में सोते समय वे अपने पहले भक्त म्हालसापति को कहकर सोते कि म्हालसापति का हाथ उनके ह्रदय पर रखा रहना चाहिए ये देखने के लिए कि कहीं उनकी प्रत्येक श्वांस के साथ चलने वाला भगवत-स्मरण या अल्लाह का नाम-रटन बंद तो नहीं हो गया है!    

साई सच्चरित्र में उल्लेख आता है कि बाबा एक बार एक शराबी के सपने में आये और उसकी छाती पर चढ़ गए। वो तब तक नहीं उतरे जब तक उसने शराब के सेवन से तौबा नहीं कर ली। सच ही तो है, पहले इंसान शराब को पीता है, फिर शराब इन्सान को पीती है।

सट्टा लगाना, खेल में या किसी वास्तु का, भी इस काया का दुरुपयोग है। महाभारत इसकी परिणीति के रूप में सामने आया। दामू अन्ना कासार का किस्सा साई सच्चरित्र में आता है। वो पहले रुई पर और फिर अनाज के दाम पर अपनी बाज़ी, जो एक प्रकार का सट्टा ही थी, लगाना चाहता था। बाबा से अनुमति मांगी। धन का घात शरीर पर पहले असर करता है। बाबा ने स्पष्ट मना कर दिया और उसे परिणाम देख समझ में भी आ गया कि बाबा ने उसे अनिष्ट से बचा लिया था।

एक आलसी किसान था जो ढेर सारी ज़मीन होते हुए भी गरीबी में जी रहा था। बाबा ने एक दिन उसे बुलाकर कहा कि उन्हें सपना आया है कि उसकी ज़मीन में ख़ज़ाना गड़ा है। उन्होंने उस किसान को सलाह दी कि उसे दायें से बाएं खेत जोतना चाहिए। उसने बाबा का कहा माना लेकिन उसे ख़ज़ाना नहीं मिला। बाबा के पास गया। बाबा ने उसे कहा कि अब उसे ऊपर से नीचे खेत को जोतना चाहिए। उसने वही किया लेकिन नतीजा वही। अब बाबा ने उसे एक बोरा गेहूं देकर कहा कि उसमें बो दे। उसे बाबा की सीख मिल गयी थी कि शरीर को परिश्रम में लगाये बिना कोई ख़ज़ाना मिलता नहीं है।

एक और किस्सा है, श्री साई सच्चरित्र में। श्रीमान आम्बडेकर का। दीनता में जीवन-यापन करते हुए उसने शिर्डी आकर कुँए में कूद कर इहलीला समाप्त करने की सोची। कुँए की मुंडेर पर बैठ कूदने को हुआ तो वहाँ से सगुण मेरुनायक का निकलना हुआ जिनके पास अक्कलकोट स्वामी की जीवनी थी। उसने आम्बडेकर को, उसकी मंशा जाने बिना, यह किताब पढ़ने को दे दी। उसने जहाँ जीवनी खोली, उसी पृष्ठ पर एक व्यक्ति का उल्लेख निकला जो अपनी देह को समाप्त करने के उद्देश्य से स्वामीजी के पास आया था और स्वामीजी ने उसे कैसे बचा लिया था। आम्बडेकर को समझ में आ गया कि बाबा की कृपा से ही उसे यह संकेत मिला है कि वह इस देह को व्यर्थ न करे। बाबा के आशीर्वाद से देखते ही देखते आम्बडेकर की स्थिति में ज़बरदस्त सुधार आ गया और उसने सामुद्रिक ज्योतिष के माध्यम से बहुत धन कमाया।

समय का चरित्र है कि वह बदलेगा। बुरे समय में अपने देह को कष्ट देने से अच्छा है कि उसे साई की भक्ति में लगाया जाए। यही इस देह का काम भी है। बुरा समय जल्दी ही करवट ले लेता है। इस देह को संभाल कर रखने में ही साई की सच्ची पूजा है। देह साई को पाने का माध्यम है। इसे व्यर्थ काम और मद में भटकाना, इसका अपमान है।

बाबा भली कर रहे।।

श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु। शुभं भवतु।

Monday 26 October 2015

जिन्ने पानी, उन्ने छुपानी



साई बाबा कुछ वाक्य अकसर अपने भक्तों के सामने लगातार दोहराते रहते उनमें एक वाक्यजिन्ने पानी, उन्ने छुपानी - बाबा सीख के रूप में अपने भक्तों को प्रमुख रूप से बताते इस कहावत का मतलब था कि जिसे जो भी मिला है या मिलता है, उसे उसकी नुमाईश कर, उसे छुपाए रखना चाहिए इसके पीछे बाबा की मंशा रही होगी कि उनके भक्तों को अपने मन की बात मन में ही रखना आना चाहिए उनका मानना था कि अपने मन की बात जब हम लोगों के सामने कह देते हैं तो उस बात के फलीभूत होने में कई अडचनें आती हैं जो लोग हमारे प्रति सकारात्मक भाव नहीं रखते, वे हमारी मंशा को जान, हमारे काम को निष्फल करने का प्रयास करेंगे उनकी मानसिकता हमें हतोत्साहित करने की ही होती है आम तौर पर इंसान दूसरों के सुख से दुखी और दूसरों के दुःख से सुखी होता है यह सहज मानव स्वभाव है इस प्रवृत्ति से अपने आप को बचाने के लिए बेहतर होता है कि हम गोपनीयता का पालन करें और नाहक ही अपने आप को दूसरों के सामने खोल के रख दें

हमारे शास्त्रों में भी कई ऐसी बातें बताई गई हैं यदि उनका पालन ठीक तरह से किया जाए तो हम हमेशा परेशानियों से बचे रहेंगेअकसर देखा गया है इंसान अपने स्वभाव के कारण अपनी हर बात को लोगों को बता देता है, जिस वजह से बाद में उसे परेशानी का सामना करना पड़ता हैहमें इन कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए
१.     इंसान को अपने पद मान-सम्मान की बात को गुप्त रखना आना चाहिए ऐसा करने से अंहकार का भाव इंसान पर नहीं आता है अंहकार आने से इंसान के पद मान-सम्मान का पतन होता है साई बाबा भी अहंकारी को अपने से दूर रखते थे अहंकार ईश्वर-प्राप्ति में बाधक होता है
२.     वर्तमान समय में और परिदृश्य में धनवान का मान किया जाता हैधन ही मनुष्य की शक्ति और सामर्थ्य का परिचायक बन गया है धन के आधार पर ही घर रिश्ते निभाए जाते हैं लाभ और हानि व्यापार-व्यवसाय के दो पहलू हैं और कोई भी इनसे अछूता नहीं रहता यदि कभी जीवन में धन हानि हो भी जाए तो इस बात को कभी भी दूसरों को बताएं धन हानि के बारे में लोगों को पता चलते ही आपके अपने पराए सभी आपको अकेला छोड़ देंगेंधन और यश दोनों ही अपने पूर्व कर्मों का फल होते हैं। इन्हें साई की ही कृपा मानो और उसको ही कारक मान कर सम्मान को सर-माथे लगाकर रखो और धन का प्रदर्शन न करते हुए व्यर्थ के आडम्बर से दूर रहो तो बेहतर होगा।
३.     शास्त्रों में दान का अधिक महत्व बताया गया है और दान यदि गुप्त रूप से दिया जाए तो अहंकार पैदा ही नहीं होता और अहंकार के अभाव में ही दान दिया जाना सार्थक होता है ऐसी मान्यता है कि गुप्त दान देने से इंसान को देवी-देवताओं की कृपा और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है
४.     गुरू की सीख और उसके उपदेश को गुप्त रखना चाहिए ये सीख तभी इंसान पर अपना असर करती जब गोपनीयता का पालन किया जाए गुप्त रखी गयी सीख से इंसान को अपार सफलता मिलती है अपने ज्ञान का व्यर्थ प्रदर्शन करने से आप अपने आप को शक्तिहीन बनाना प्रारम्भ कर देते हैं। लोग समझ जाते हैं कि आप कितने पानी में हैं।
५.     पति-पत्नी-संतान का रिश्ता बहुत ही पवित्र, गरिमामयी होता है कभी भी इन रिश्तों के बीच होने वाली बातों को किसी के सामने नहीं कहना चाहिए चाहे वह इनके बीच लड़ाई हो या प्रेम की बातें, इन बातों को आपस में गुप्त रखना चाहिए ये बात किसी बाहरी इंसान को पता नहीं होनी चाहिए इन बातों का भान किसी और को होते ही रिश्ते में दरार पड़ना शुरू हो जाती है
६.     प्राचीन समय से शास्त्रों में ये बात भी कही गई है की औषधि यानि दवाई को भी दूसरे लोगों से छिपाकर इस्तेमाल करना चाहिए दवा और डॉक्टर के बारे में पता चलते ही आपका दुश्मन आपके स्वास्थ्य और उसकी समस्याओं के बारे में जान जाता है और अपनी रणनीति उसके अनुकूल बनाता है  
७. कभी जीवन में किसी बात पर आपका अपमान होता है तो इस बात को भी गुप्त रखना आपके लिए फायदेमंद होता है दूसरों को अपने अपमान की बात बताने से लोग आपका मजाक बना सकते है जिससे इंसान ज्यादा दुखी होता है
अपने साई की सीख पर पर हर इंसान को ध्यान देना चाहिए ताकि वह जीवन में आने वाली परेशानियों से बच सके


 बाबा भली कर रहे।।

श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु। शुभं भवतु।