मन का क्या है; भागता; रहता चारों ओर ।
करो समर्पित साई को मिले तभी उसे ठौर ।
जीवन में जो अप्रत्याशित और असंभावी होता है, हम उसे चमत्कार कहते हैं। जिसके बारे में कभी हमने सोचा नहीं; और यदि कल्पना की भी तो, उन्हें साकार करने की हमारे अंदर शक्ति नहीं थी। उनके प्रयोग के तौर-तरीके हमें नहीं पता थे।
मतलब, जो हम अपने जीवन में साक्षात नहीं कर पाए, अगर कोई दूसरा उसे करके दिखाता है, तो वो हमारे लिए चमत्कार हो जाता है। हम उस व्यक्ति को असाधारण व्यक्तित्व मानने लगते हैं। उसे पूजने लगते हैं। उसकी कहीं बातों और सलाह-मश्वरों पर अमल करने लगते हैं।...और हमें करना भी चाहिए, अगर उस व्यक्तित्व के चमत्कार समाज को एक नई दिशा देते हों, देश के हित में हों, हमारी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाते हों, जो संसार को संस्कारित करने की पहल करते हों।
बाबा ऐसे ही चमत्कारिक संत थे। वे प्रयोगधर्मी थे। वे एक ऐसे महापुरुष थे; जो लोगों को सच के रास्ते पे चलने का मार्ग दिखाते थे। वे एक ऐसे शिक्षक थे; जो अपने भक्तों को अच्छाई का पाठ पढ़ाते थे। उन्हें एक ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर भी याद कर सकते हैं, जो अपने नये-नये प्रयोगों से लोगों की आंखों पे पड़े अज्ञानता के पर्दे को हटा देते थे।
साईं बाबा ने वही चमत्कार किए। उनका आशीर्वाद, सान्निध्य हमें वहीं सुखद अनुभूति देता है, जैसी हमें अपने पुरखों के स्मरण के दौरान मिलती है। बाबा का सम्पूर्ण व्यक्तित्व चमत्कारिक था। उनके भीतर एक चुंबकीय प्रभाव था, जो हमें खींच लेता था। चुंबक बेहद प्रभावशाली तत्व है, जो बिजली के उत्पादन में सहायक की भूमिका निभाता है। बिजली हमें रोशनी देती है, हमारे दैनिक जीवन में काम आने वालीं तमाम भौतिक चीजों जैसे पंखा, टीवी, कूलर, फ्रिज आदि चलाने के काम आती है।
बाबा का चुंबकीय प्रभाव हमारे मन में विद्युत पैदा करता है। सकारात्मक ऊर्जा का ऐसा करंट दौड़ाता है, जो हमारे तंत्रिका तंत्र को अच्छे कर्मों के लिए उद्देलित करता है। मन को शांत करता है, तन को स्फूर्ति देता है। यानी अंदर और बाहर दोनों से हमें निर्मल कर देता है।
जब तब इनसान चांद तक नहीं पहुंचा था, तब तक चांद से टुकड़ा तोड़कर लाना एक कल्पना मात्र थी। लेकिन जब इनसान ने चांद पर कदम रखा, वहां की माटी, पत्थर धरती पर लाए, तो हमने उसे चमत्कार कहा। यह इनसान का किया चमत्कार था। इनसान लगातार चमत्कार कर रहा है। सारे चमत्कारों की जनक सकारात्मक ऊर्जा है, जो हरेक बंदे के भीतर निहित है। लेकिन उस ऊर्जा का प्रयोग करना एक कला है और अपने अंदर की इस कला को परखना एक चुनौती। बाबा का सान्निध्य हमें इसी आर्ट में पारंगत करता है। हमें इस चुनौती के लिए तैयार करता है।
चमत्कार को सभी सलाम करते हैं। लेकिन बाबा आज भी जो चमत्कार करते आ रहे हैं, उन्हें सिर्फ सलाम ठोंककर अपने-अपने रास्ते बढ़ लेना काफी नहीं है। उन चमत्कारों के पीछे छिपे मकसद को जानना-पहचानना और उन्हें आत्मसात करना अत्यंत आवश्यक है, तभी हम स्वयं को बदल सकते हैं, समाज में बदलाव लाने की बात सोच सकते हैं, दुनिया में बदलने की पहल कर सकते हैं।
तब की एक कहानी....
बात 1910 की है। शिर्डी के आसपास के क्षेत्र में हैजा फैला हुआ था। यह बीमारी कहीं शिर्डी तक न पहुंच जाए, इसे लेकर लोग परेशान थे; डरे हुए थे। एक दिन लोगों ने देखा बाबा मस्जिस्द में बैठे चक्की पर गेंहू पीस रहे हैें। यह देखकर लोगों को आश्चर्य होना लाजिमी था, क्योंकि दो-तीन रोटी खाने वाले एक बाबा को ढेर-सारे आटे की क्या आवश्यकता पड़ी? ऐसा अचरज भरा दृश्य लोगों के मन में किस्म-किस्म के सवाल पैदा करने लगा। कुछ महिलाओं ने बाबा को उठाकर गेंहू पीसने का काम अपने जिम्मे लिया, लेकिन उनकी नीयत कुछ और थी। मौका पाकर वे आटा अपने साथ लेकर जाने लगीं। बाबा ने उन्हें फटकारा। आदेश दिया कि, यह आटा गांव की मेंड़(सरहद) पर बिखेर दिया जाए। लोग बुरे मन से ऐसा कर आए। कुछ दिनों में लोगों ने देखा कि, हैजे का दुष्प्रभाव खत्म हो गया है।
वर्षों से एक कहावत चली आ रही है, गेंहू के साथ घुन पिसता है। बाबा चक्की में गेंहू नहीं; हैजा रूपी घुन पीस रहे थे। यह बाबा की लीला थी। व्यक्ति में अपार ऊर्जा निहित होती है। वो इसी की शक्ति से असंभव को संभव में बदलता है। लेकिन बाबा तो स्वयं ऊर्जा का स्त्रोत थे। इसलिए उनके लिए कोई भी काम असंभव नहीं था और आज भी नहीं है।

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