Saturday 29 August 2015

हर हार में जीत होती है..

जीवन में हार और जीत साथ-साथ चलते हैं. हार के बाद जीत और जीत के साथ हार लगे ही रहते हैं. जीवन के हर पहलू में ये दोनों साथ-साथ या फिर आगे-पीछे तो ज़रूर मिलते, चलते हैं. जीवन हर पल बदलता रहता है. स्याह अँधेरे के बाद उजाला होता है यह सृष्टि का नियम है और जब रात बहुत गहरी हो जाए तो मानना चाहिए कि उजाला पास ही है; सूरज बस उगने ही वाला है. प्रकृति का नियम है कि सूरज उगने पर सवेरा होता है न कि सवेरा होने पर सूरज उगता है. ठीक वैसे ही जैसे उत्कंठा के उत्पन्न होने पर ही ज्ञान प्रकट होता है न कि ज्ञान के प्रकट होने पर उत्कंठा उत्पन्न होती है. प्यास लगने पर ही हम पानी को खोजते हैं.

रात और सुबह का जो संधिकाल होता है उसे ‘कल्य’ कहा जाता है. इसी से बना है शब्द ‘कल्याण’. इसी तरह अँधेरे से उजाले की ओर हमारे सफ़र की शुरुआत ही हमारे कल्याण के मार्ग को खोलती है. हमारा भला होने की शुरुआत यहीं से होती है. अपनी ही लगाई हुई बाज़ी में अपने ही हाथों हुई अपनी हार को जीत में बदलने की कोशिश यहीं से शुरू होती है. वो पल, जब हमें यह अहसास होता है कि अब हमें अँधेरे से निकलना है और उजाले की ओर बढ़ना है, यही वो समय होता है जब हम अपने आप को खोजने की शुरुआत करते हैं.


क्या होती है ये हार और जीत? जब हम किसी भी काम के अंजाम को, उसके परिणाम को अपनी सोच या चाहे अनुसार पा लेते हैं तो हमें जीत का अहसास होता है. और जब ये परिणाम हमारी सोच के उलट आता है तब हमें हार का अहसास होता है. कर्म का मूल सिद्धांत हम बार-बार भूल जाते हैं कि हमारा अधिकार केवल कर्म पर है, उसके परिणाम पर हमारा कोई अधिकार नहीं है और इसीलिए हमें आसक्ति रखनी हो तो सिर्फ कर्म तक ही रखें, परिणाम में आसक्ति रखने से हम दुःख की बुनियाद रख रहे होते हैं. हमारे किसी भी कर्म का परिणाम हमारे लाख सर पटकने से भी हमेशा हमारे चाहे अनुसार आये ये कतई संभव नहीं है.

कहा भी तो गया है, “मन का हो तो अच्छा. न हो तो और भी अच्छा!” क्योंकि जो तब होता है वो हमारे मन का न होकर के साई के मन का होता है और वो कभी भी हमारा बुरा नहीं चाहता या होने देता. सिर्फ उसमें पूर्ण श्रद्धा रख, सब्र से काम लेना चाहिए. इससे हार होने पर दुःख की अनुभूति आहत कर, दुखी नहीं करेगी और जीत होने पर हमें अहंकार के पंख नहीं लग जायेंगे. हार होने पर भी जब हम उसका शुक्र मनाते हैं तब हम हार को हराते हैं. इसी तरह, जब हम अपनी जीत में ख़ुद श्रेय न लेकर कर साई का शुक्रिया अदा करते हैं तो हम अपनी जीत उसे समर्पित कर रहे होते हैं. तब हम जीत को जीत लेते हैं. हार को हराना और जीत को जीत लेने में ही जीवन के अँधेरे से उजाले के सफ़र का सार है.

पराजय जिसे तोड़ नहीं सकती और विजय जिसको डिगा नहीं सकती वो साई का सच्चा भक्त होता है. साई ने भी तो हार का स्वाद चखा था. श्री साई सच्चरित्र में उल्लेख आता है कि शिरडी में अपने शुरूआती दिनों में बाबा एक पहलवान की तरह रहते थे. उनके लम्बे बाल थे और शरीर बलिष्ठ. उन्हें मोहिनुद्दीन नाम के एक पहलवान ने कुश्ती के लिए ललकारा. लिखा है कि बाबा इस कुश्ती में हार गए थे. इस हार के बाद बाबा की जीवन शैली बदल गई थी. अब वो लम्बी कफनी पहनने लगे थे. बाल छोटे हो गए थे. अब वो अपनी अनोखी चिकत्सीय विधा से शिरडीवासियों की सेवा में लग गए थे. यहीं से उन्होंने आमजन को अपनी सेवा का साधन बनाया.

सवाल यह उठता है कि जब बाबा ईश्वर हैं और उनके पास तो हमारे जैसे भक्तों के सितारे बदलने की भी अदम्य शक्ति है तो यह कैसे संभव हैं कि वो एक आम पहलवान से हार जायें! यहाँ हमें यह समझना होगा कि बाबा शिलधि (शिरडी का मूल नाम) नाम के इस स्थान के बल से मनुष्य योनी में यहाँ खिंचे चले आये और इस पुण्य-भूमि को उन्होंने संवारने का काम शुरू कर दिया. यह उनका प्रारब्ध था. इस मानव रूप में उनकी तपस्या शुरू हो गयी थी जिसमे उनको एक साधारण मनुष्य की तरह तप कर, एक मिसाल अपने भक्तों के सामने रखनी थी. कुश्ती में हुई उनकी यह हार उनके इस मानव रूपी जीवन का निर्णायक मोड़ बनी जहां से उनकी आध्यात्मिक उन्नति के द्वार खुले और इसीसे हमारे और आपके जैसे साधारण मानव आलोकित होने लगे. इस अवतार में कुश्ती में मिली हार उनका मनोबल तोड़ नहीं पायी बल्कि इसी हार ने उनके जीवन को एक नयी दिशा दी. मोहिनुद्दीन से हारे इस शरीर को अब वो परमपिता के ध्येय, मानव जाती के उत्थान में लगा चुके थे. उन्होंने हार को हरा दिया था. अब वो जीत को जीतने चल पड़े थे.

बाबा के नाम में जो विश्वास रखते हैं उन्हें यह भरोसा होना चाहिए कि उनकी हर हार में जीत है. ग़म के बादल छाए तो हम मुस्कुराते रहें. अपने मन में आशाओं के दीप हमेशा प्रज्ज्वलित रखें. आज जो बिगड़ा है, वो कल जरूर बनेगा. जो आज रूठा बैठा है, वो नसीब कल ज़रूर मनेगा. साई के नाम में प्रगाढ़ विश्वास रखो. हर हार एक नयी जीत की इबारत है. हर अँधेरा उजाले की निशानी है.         
 


                      बाबा भली कर रहे..

                  www.saiamritkatha.com

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