बुरे कर्म से दूर करे साई तेरा जाप।
ज्यों गंगा निर्मल करे, मन के सारे पाप।
हमारे पाप, बुरे इरादे, बुरे कर्म जो हमे भगवान यानी सद्मार्ग पर जाने से रोकते हैं, मंगलाचरण से वे सारे विकार भस्म हो जाते हैं। कोई भी अच्छा काम करने से पहले हम अपने मन को स्वच्छ बनाने की कोशिश करते हैं। साई हमारे इसी प्रयास को सफल बनाने का जरिया हैं।
साई गंगा का प्रतीक हैं, जिनमें अपना ध्यान यानी गोते लगाने से मन-तन निर्मल हो जाता है। लेकिन इसका बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि, जब हम गंगा में गोते लगाने उतरते हैं या ईश्वर के आराधना में लीन होने की तैयारी करते हैं, तो सबसे पहले अपने मन से सारी दुविधाएं, विकार, ईष्र्या-घृणा आदि को स्वत: दूर करने की कोशिश करते हैं। यानी साई गंगा में उतरने से पहले हमें खुद के प्रयासों से स्वयं को पवित्र करने का जतन करना चाहिए।
इसे कुछ उदाहरण से समझ सकते हैं। गंगा मैली क्यों हुई? वो इसलिए क्योंकि लोगों ने अपने आर्थिक मुनाफे के लिए उसमें अपने उद्योगों की गंदगी बहाना शुरू कर दी। जाने-अनजाने लोगों ने उसमें कचरा फेंकना शुरू कर दिया। अब गंगा को पहले जैसा निर्मल करने की मुहिम शुरू हुई है। गंगा में स्नान के मायने यही माने जाते हैं कि हमारे सारे पाप धुल जाएंगे। लेकिन अगर सोचिए अगर हम मैली गंगा में डुबकी लगाएंगे, तो क्या होगा? निश्चय ही हमें चर्म रोग हो सकता है। और भी कई बीमारियां हो सकती हैं।
यानी हम नहाने के लिए भी साफ पानी की दरकार रखते हैं। यदि हम कीचड़ में सने होकर नहाने पहुंचते हैं, तो सबसे पहले थोड़े-थोड़े पानी से कीचड़ साफ करते हैं उसके बाद नहाते हैं। ऐसा नहीं करते कि, कीचड़ में सने होकर सीधे बॉथ टब में उतर जाते हैं या पूरा पानी खराब कर देते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि, पहले अपने प्रयासों से जितना हो सके खुद को साफ कर लिया जाए।
जब हम गंगा मैया में डुबकी लगाने जलधारा में उतरते हैं, तो सबसे पहले सूर्य देवता/अपने अराध्य देवता आदि की स्तुति करते हैं कि, वो हमारे प्रयासों को सफल बनाए, हमारे मन-तन को निर्मल कर दे।
एक और उदाहरण है। जब हमें कीचड़ में से होकर अपने घर पहुंचते हैं, तो अंदर प्रवेश करने से पहले अपने जूते-चप्पल बाहर दरवाजे पर बिछे पैरदान से पौंछते हैं-साफ करते हैं। उद्देश्य यही होता है कि, हमारा घर मैला न हो जाए।
साई गंगा का प्रतीक हैं, पवित्रता का सूचक हैं। वे एक स्वच्छ जल का पर्याय हैं। इसलिए साई स्तुति में गोते लगाने से पहले हमें खुद भी प्रयास करने हैं साफ-सुथरा रहने के। मंगलाचरण यही हमारा प्रयास है। इससे हमारी अगली राह आसान हो जाती है। जैसे घर में पानी से पौंछा लगाने से पहले हम झाड़ू से साफ-सफाई करते हैं, ताकि पौंछा लगाने में आसानी रहे। कंकड़-पत्थर आदि साफ हो जाएं। वे पौंछा लगाने में रोड़ा न बनें।
ये कंकड़-पत्थर कुछ और नहीं, हमारे भीतर के विकार हैं। अगर हम बुरे इरादों-भावों से ईश्वर की प्रार्थना करेंगे, तो उनके चाहते हुए भी हमारा भला नहीं होगा। इसे ऐसे समझें। एक कांच/स्टील/अलमारी आदि किसी को भी साफ करने से पहले उस पर कंकड़-पत्थर डाल दीजिए, फिर उसे कपड़े से रगडि़ए। परिणाम अच्छे नहीं मिलेंगे। धातु साफ तो होगी, लेकिन कंकड़-पत्थर के घर्षण से उसमें रगड़ के निशान आ जाएंगे, उसकी खूबसूरती पर बुरा असर पड़ेगा। वो चटक भी सकता है।
ठीक वैसी ही स्थिति हमारी है। अगर हम घृणा-तृष्णा, स्वार्थ, ईष्र्या, दुर्भावना रूपी कंकड़-पत्थर अपने मन में लेकर ईश्वर की प्रार्थना करेंगे, साई नाम में गोते लगाएंगे, तो भगवान/साई अपने पौंछे से हमारा मन साफ करने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे, लेकिन उनके पौंछे की रगड़ से ये कंकड़-पत्थर हमारे मन में निशान छोड़ देंगे। इसलिए अपने मन को हमेशा दोषमुक्त रखने की कोशिश करते रहना चाहिए।
बाबा अपने भक्तों को सही राह पर लाने अकसर ऐसे उदाहरण भी देते थे; जो उस वक्त गले नहीं उतरते थे, या अचरज पैदा करते थे, लेकिन बाद में पता चलता था कि, उनमें कितना गूढ़ रहस्य छुपा था। जैसे एक डाक्टर जब बच्चे को कड़वी दवाई देता है, तो वो उससे झूठ बोल देता है कि; बच्चा यह दवाई को बड़ी मीठी है। डाक्टर की बातों में आकर बच्चा कड़वी दवाई एक झटके में गटक जाता है, लेकिन जैसे ही दवा उसके कंठ को तर करती है, वो बुरा-सा मुंह बना देता है। बाबा भी अपने भक्तों के भीतर जमी गंदगी/बुराइयों/पाप को दूर करने कड़वे वचन बोलते रहे, लेकिन इसके पीछे उनकी मंशा हमेशा भक्तों की भलाई रही।
तब की एक कहानी...
एक बार की बात है। बाबा के एक भक्त ने दूसरे भक्त को अपशब्द बोल दिए। बाबा तो ठहरे अंतरयामी; उन्होंने वहां मौजूद न रहते हुए सबकुछ भांप लिया। शाम के वक्त बाबा लेंडी बाग घूमने निकले। वहां बाबा का वो भक्त भी था; जिसने अपशब्द बोले थे। बाबा ने समीप विष्ठा खाते हुए एक सुअर की ओर इशारा किया-देखो वह कितने प्रेम के साथ विष्ठा खा रहा है। उस भक्त को पहले यह बात समझ नहीं आई कि; बाबा ने बगैर किसी प्रयोजन के सुअर की बात क्यों छेड़ी। लेकिन बाद में वो समझ गया कि; बाबा का इशारा उसी की ओर है।
दरअसल, हम दूसरों की निंदा करके ऐसा महसूस करने की कोशिश करते हैं; मानों हमारे मन को सुकून पहुंचा हो, लेकिन ऐसा होता नहीं। जैसे, सिगरेट-शराब जैसी आदतें शुरू में तो आनंद देती हैं, लेकिन बाद में यह हमारे जीवन को नरक बना देती हैं। ठीक वैसी ही स्थिति हमारे भीतर छुपी बुराइयों की है। ड्रग की आदत छुड़ाने के लिए व्यक्ति को जब नशामुक्ति केंद्र में रखा जाता है, तो शुरुआत में उसे तकलीफ होती है। क्योंकि उसे जब अपनी आदत के अनुसार ड्रग नहीं मिलता, तो वो तड़पता है। उसे लगता है कि; उसके साथ ऐसा दुव्यर्वहार क्यों किया जा रहा है, उसे कष्ट क्यों पहुंचाया जा रहा है? लेकिन बाद में जब वो नशे से मुक्त हो जाता है, तब उसे आभास होता है कि; पीड़ा में तो वो तब था, अब तो आनंद में लौटा है। ठीक वैसे ही बाबा कई बार भक्तों को सही राह पर लाने कड़वे वचन बोल देते थे।
जैसा कि; हमने कहा है कि,बाबा तो गंगा हैं। अगर हम अच्छी नीयत के साथ उनके सान्निध्य में रहेंगे, गोते लगाएंगे, तो तन-मन दोनों निर्मल हो जाएंगे।...और अगर मन में मैल लेकर गंगा में डुबकी लगाएंगे, तो कुछ भी भला होने से रहा।
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