Friday, 20 February 2015

साई का सान्निध्य मतलब अंदर से बदलाव का संकेत..


बिन गुरु ज्ञान मिले नहीं, चाहे कर लो लाख जतन।
साई नाम बदल दे जीवन, क्या तन और क्या मन।

बदलाव जिंदगी की धुरी है। जैसे समय कभी स्थिर नहीं होता; ठीक वैसे ही जिंदगी का हर कभी भी एक-समान नहीं हो सकता। जो इस बदलाव के साथ खुद का ढाले;सकारात्मक सोच और कर्मों के साथ खुद को आगे ले जाए, वही साई का सच्चा भक्त है। साई बाबा अपने भक्तों को इस बदलाव के लिए हमेशा तैयार करते हैं। आप शिर्डी क्यों जाते हैं; क्योंकि आपको बाबा में पूर्ण विश्वास है कि; वो आपके अंदर गहराई से दबे-छुपे, बैठे विकारों और पापों को धो डालेंगे-दूर कर देंगे। बाबा के प्रभाव में आते ही, आपकी बुरी आदतों और बुरी सोच में सकारात्मक बदलाव आ जाएगा।

प्रकृति भी समय के साथ-साथ बदलती है। क्योंकि उसे पता है कि अगर मौसम एक-सा रहा; तो आपके जीवन में कोई रस नहीं रह जाएगा। आपके अंदर ऊब पैदा होने लगेगी और आपको अपना जीवन नीरस लगने लगेगा। जैसे उत्तरी धु्रव पर छह-छह महीने दिन और रात रहते हैं। क्या कोई सारी जिंदगी खुशी-खुशी वहां रह सकता है? कतई नहीं; वैज्ञानिक वहां मनुष्य के लिए कुछ नये शोध के लिए वहां जाने का जोखिम उठाते हैं। उन्हें वहां शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की बीमारियों घेरती हैं। कल्पना कीजिए यदि आपको एक गुफा में 6 महीने के लिए बंद कर दिया जाए, जहां रोशनी न पहुंचती हो, तो आपका जीवन कैसा होगा?

प्रकृति ने इसीलिए ऋतुएं बनाई हैं, ताकि आपके अंदर नीरसता न आए। आप जीवन को आनंद से जी सकें। बाबा आपके अंदर यही प्रयास करते हैं। वे आपके अंदर  बदलाव लाते हैं। लेकिन क्या वाकई कहीं कोई बदलाव होता है? सूर्य तो अपनी जगह स्थिर है, चांद तो अपनी जगह से कभी कहीं हिला भी नहीं? दरअसल, जो कुछ परिवर्तन होता है, वो पृथ्वी के घूमने से है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और बदलाव होते हैं। ठीक वैसे ही जब हमारे मन की धुरी घूमती है, तो हमें अंदर से बदलाव महसूस होता है। बाबा उस धुरी को घुमाते हैं। जैसे एक कुम्हार चक्के को घुमाकर अमूर्त माटी को मूर्त रूप दे देता है। बाबा वही करते हैं। हमारे अंदर के विचारों को एक खूबसूरत रूप देते हैं।

सक्रांति के पर्व पर कहा जाता है कि सूर्य अपनी दिशा बदल रहा है। यानी बदलाव का संकेत। सूर्य के इर्द-गिर्द अपनी धुरी पर गोल-गोल घूमते हुए पृथ्वी अपना कोण बदल लेती है, तो हमें लगता है सूर्य ने दिशा बदल ली है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। सूर्य तो वहीं विराजा है, घूम तो पृथ्वी रही है। कहने का तात्पर्य वर्षों तपस्या करने, परोपकार करने के बावजूद जब हमें वांछित फल नहीं मिलता, तो हमें लगता है कि, ईश्वर बदल गए हैं। वे हमारे लिए कुछ नहीं सोच रहे। कई मंदिरों, साधु-संतों, महात्माओं के मामले में ऐसा होता है। हम वर्षों उनकी सेवा-चाकरी करते हैं, लेकिन जब उनसे हमें मनचाहा परिणाम नहीं मिलता, तो हमें किसी दूसरे मंदिर की राह पकड़ लेते हैं। हमें किसी अन्य महात्मा, साधु-संत की शरण में चले जाते हैं। यानी हम अपनी दृष्टि ओर कोण दोनों बदल लेते हैं, लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा कि, ऐसा आखिर हुआ क्यों?

क्योंकि हम जहां भी गए, जिस मंदिर गए, साधु-संतों, ऋषि-मुनियों के पास गए, पहले से ही यह तय कर लिया था कि, हमें इस भक्ति-सेवा के बदले फलां चीज चाहिए। बस, इसी कारण हमारे मन में खोट नजर आने लगती है। जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर ही घूमते हुए दिशा बदलती है, उसी प्रकार हम अपने भाव बदल लेंगे, तो दुनिया जो हमें अभी आड़ी-टेढ़ी, उल्टी-सीधी दिखती है, वो सीधी और सरल नजर आने लगेगी। 

भगवान यानी साई हमारे अंदर हमेशा मौजूद हैं, लेकिन अपने लालच में इतने मगन हैं, कि हमने अभी उनसे हाथ नहीं मिलाया (शेक हेंड) नहीं किया है। साई की अमृत कथा उनसे शेक हेंड करने का एक प्रयोजन/आयोजन ही तो है। एक जरिया ही तो है। अगर हम उनके चरण पखारेंगे और उनके चरणों की धूल अपने माथे पर लगाएंगे। वो चरण गंगा, जिसमें दास गणु महाराज(शक संवत 1800 में दासगणु को बाबा का सान्निध्य मिला। इन्होंने बाबा पर कई मधुर कविताओं की रचना की।) को बाबा ने प्रयाग स्नान कराया था, वो चरण गंगा, जो हर साई अमृत कथा में बहती है, हम उसमें डुबकी लगाएंगे, तो सब पवित्र हो जाएगा।
 
साई बाबा अजब फनकार हैं। वे बेहद दयालु, बड़े कृपालु हैं। कृपा करते ही रहते हैं। ...और जो साई की अमृत कथा में आते हैं, वे बाबा की कृपा से बाबस्ता हो चुके हैं, तभी तो आते हैं। हम साई के पास जाते हैं। उनसे कुछ मांगते हैं। वेे मुस्कुराते हुए हमें दे देते हैं। बस, हमारा लालच बढ़ जाता है। हम फिर मांगने जाते हैं, बाबा फिर से हमारी झोली भर देते हैं। हम मांगते जाते हैं, बस मांगते ही जाते हैं। बाबा भी हमें देते चले जाते हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब हम मांगते-मांगते थक जाते हैं, लेकिन बाबा देते-देते कभी नहीं थकते। 

बाबा से हमने जो मांगा, वो पाया। कुछ हमने अपने लिए लिया, तो कुछ अपनों के लिए। अपने आस-पड़ोसी, समाज, देश, दुनिया में शांति, सद्भावना, प्रगति, आर्थिक-सामाजिक सम्पन्नता के लिए भी हम बाबा के आगे झोली फैलाते हैं। बाबा कभी मना नहीं करते। क्योंकि इनकार शब्द बाबा की शब्दावली में नहीं है। वे मुस्कराते हुए हमारे ऊपर परोपकार बरसाते जाते हैं।
जो हमें मांगने पर मिलता जाता है, उसे हम चमत्कार कहने लगते हैं। बाबा वही चमत्कार करते हैं। यह उनकी एक लीला है। वो हमको इतना कुछ देते जाते हैं कि, एक स्थिति ऐसी आती है जब, हमारे भीतर डर बैठ जाता है। बाबा ने हमें जो दिया, कहीं वो किसी ने छीन लिया तो? हर चीज की नश्वरता का अहसास होने लगता है। 

कुछ लोग साई पर अपना एकल अधिकार समझने लगते हैं। उन्हें यहां तक डर लगने लगता कि, कहीं साई कृपा उनसे कोई छीन न ले। लेकिन ऐसा नहीं है। साई तो रोशनी है, पानी हैं, हवा हैं, जिन पर सबका अधिकार है। वे सर्वव्यापी हैं। सबका हित सोचते हैं। जैसे हवा, पानी और रोशनी को मु_ी में कैद करके नहीं रखा जा सकता, ठीक वैसे ही बाबा को बंदी नहीं बनाया जा सकता। हां, अगर हम उन्हें मन में उतार लें, तो वे सदा के लिए वहां विराजे रहेंगे। हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। उनकी कृपा हमेशा हमारे ऊपर बनी रहेगी। क्योंकि साई की दी गईं चीजें नश्वर नहीं है। पानी, हवा और रोशनी अपना रूप बदलती है, लेकिन नष्ट नहीं होती। पानी भाप बनकर आकाश में उड़ जाता है, लेकिन पु:न बादलों के जरिये बारिश बनकर हमें तरबतर कर देता है। हवा और रोशनी का व्यवहार और चरित्र भी ऐसा ही है।

इसलिए अपने मन से यह डर निकाल दो, भ्रम से बाहर आ जाओ। क्योंकि, साई कृपा कभी नहीं छिन सकती। जो छिन सकता है, वो तो नश्वर विलासिता की चीजें हैं। जो साई की कृपा से उनके चरणों में विराजा है, वो यह दावा कर सकता है कि, हम भले ही बाबा से विमुख हो जाएं, लेकिन यदि उसने एक बार हम पर बाबा ने कृपा की है, तो वो जिंदगीभर बनी रहेगी।

एक बहुत बड़े वकील रहे हैं जस्टिस खापरडे। उन्होंने अपनी डायरी में कुछ यूं लिखा है-बाबा ने उनसे एक बार कहा था कि द गिफ्ट्स ऑफ मैन आर टेम्पररी, बट द गिफ्ट्स ऑफ द गॉड विल रिमेन फॉर इवर।

बाबा की कृपा क्यों कभी खत्म नहीं होगी, क्यों कोई हमसे नहीं छीन सकता? वो सारे उत्तर इस वाक्य में मिल जाते हैं। यानी मनुष्य को मनुष्य के जरिये प्राप्त सारी चीजें नश्वर हैं, लेकिन जो भगवान की देन है, वो कभी खत्म नहीं होगी। जैसे हवा, पानी और रोशनी। बाबा इन्हीं चीजों के मेल से चमत्कार करते हैं। यानी उनके सान्निध्य से हमें जो भी मिलेगा, वो हमेशा हमारे साथ रहेगा। उनके आशीर्वाद के रूप में। 

क्या कभी हमने सूर्य को खत्म होते देखा है या कभी देख पाएंगे? सूर्य नित्य एक छोर से अस्त होता है, तो दूसरे छोर पर उदय होता है। सूरज और चांद डूबते नहीं हैं, वो केवल हमें दिखना बंद हो जाते हैं। क्योंकि हम जिस छोर पर बैठे हैं, वहां से दूसरा छोर नहीं दिखता। ठीक वैसे ही बाबा का दिया कभी नश्वर नहीं होता। उसके छीने जाने या नष्ट हो जाने का भ्रम ही हमें चिंतित करने लगता है। यह चिंताएं, भ्रम हमारा लालच है। हम अपने घर की रोशनी, पानी और यहां तक कि हवा तक किसी से बांटना नहीं चाहते।
हमारा वश चले, तो हम अपनी गलियों, चौबारों से गुजरने वाली हवा, रोशनी और पानी को भी दूसरों की पहुंच से दूर कर दें। एकछत्र राज्य की सोच ही हमारे मन में डर पैदा करती है। अपना साम्राज्य बिखर जाने, छीने जाने का भय पैदा हो जाता है।

तब की एक कहानी...
बाबा मस्जिद में सदा दिया जलाए रखते थे। दीया यानी रोशनी का प्रतीक। एक छोटा-सा दिया बड़े से बड़े अंधकार को चीर सकाता है। बाबा शाम को दुकानदारों से भिक्षा में तेल मांगकर लाते थे और दीया जलाते थे। मनुष्य के मन में ईष्र्या और लालच बहुत जल्द घर कर जाता है। ऐसा हुआ भी। दुकानदारों ने सोचा कि; यह फकीर तो रोज-रोज मुफ्त में तेल मांगने आ जाता है, ऐसा कब तक चलेगा? आखिरकार उन्होंने बाबा को तेल देने से मना कर दिया।

बाबा कुछ नहीं बोले। मस्जिद आए और सूखी बत्तियां दीयों में डाल दीं। फिर टमरेल उठाया, जिसमें न मात्र को तेल बचा था। बाबा ने उसमें पानी मिलाया और दीयों में उड़ेल दिया। दीये पूर्व की भांति टिमटिमाने लगे। पानी से दीये जलते देख दुकानदारों की आंखें फटी रह गईं। वे बाबा का चमत्कार देखकर शर्मिंदा हो गए।
 

बाबा ने पानी को तेल बनाकर दुकानदारों की आंखों में शर्मिंदगी का पानी ला दिया था। यह बदलाव का संकेत था। वैसे सोचिए बाबा को टूटी-फूटी मस्जिद में दीये मिलकाने की क्या आवश्यकता थी? और एक फकीर को अंतर भी क्या पड़ता है अंधेरा रहे या उजाला? लेकिन बाबा हमेशा दीया जलाते रहे, ताकि मस्जिद में कोईआए, तो उसे ठोकर न लगे। वो अंधेरे से डरे बगैर, तसल्ली से वहां बैठ सके। दुकानदारों ने सोचा कि; यह फकीर आज तेल मांग रहा, कल कुछ और मांगेगा! बस इसी सोच ने उनके अंदर से परोपकार, सहायता, इनसानियत की भावना खत्म कर दी। उन्होंने यह नहीं सोचा कि, उनकी थोड़ी-सी मदद से दीया जल रहा है, प्रकाश हो रहा है। बाबा ने इस चमत्कार के जरिये दुकानदारों के भीतर पैदा हुए अंधकार को उजाले की ओर लाया था। बाबा का सान्निध्य हमारे अंदर उजाला पैदा करता है, जो तमाम किस्म के अंधकार को दूर करता है।

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