Tuesday 24 March 2015

कसी से झूठा वादा न करो (भाग १ )..


झूठ-फरेब की नींव पर न पुख्ता बने मकान।
जो भी करो निष्पाप हो; तभी बढ़ेगी शान।

 साई को दत्रातेय भगवान का चौथा अवतार माना गया है। ईश्वर कोई भी अवतार यूं ही नहीं। जब तक कोई विशेष प्रयोजन नहीं होता; तब तक ईश्वर पृथ्वी पर नहीं आते। हम पहले भी इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि, ऊर्जा ही ईश्वर है। सूरज की रोशनी भी ईश्वर है। सूरज की किरणों का पृथ्वी तक आना भी एक विशेष प्रायोजन की वजह है। अगर हमें सूरज से ऊर्जा नहीं मिले, तो जीवन संभव नहीं है। मानव संरचना के लिए ऊर्जा आवश्यक है और ईश्वर ने ऊर्जा के रूप में पृथ्वी पर पर्दापण किया। इसीलिए कहते हैं कि, ईश्वर तो कण-कण में व्याप्त है।

 
भगवान दत्रातेय

 बाबा का भी पृथ्वी पर आना कोई साधारण बात नहीं थी। वे भी खास मकसद से मानव अवतार के रूप में हमारे बीच आए थे। दरअसल, मोह-माया और न-न प्रकार कर बुराइयों के पनपने से इनसान की मति भ्रष्ट हो जाती है। दिमाग घूमा, तो दुनिया चकरघन्नी बनने लगती है। अराजक स्थिति पैदा हो जाती है। किस्म-किस्म की बीमारियां पैर पसारने लगती हैं। इन्हीं सबसे इनसान को उबारने-बाहर निकालने दत्तात्रेय भगवान को साई के रूप में हमारे बीच आना पड़ा।

निश्चय ही आपके मन में एक सवाल उमड़-घुमड़ रहा होगा कि, दत्तात्रेय कौन? दत्रातेय भगवान; जिनमें ब्रहमा, विष्णु और महेश तीनों समाये हुए हैं। भगवान दत्तात्रेय के साथ 4 स्वान(डॉग) भी हैं। कहा जाता है कि ये चार वेद हैं। और इनके पीछे एक गाय माता; जो इस धरा का प्रतीक है। मराठी में दत्त का मतलब होता है, दिया हुआ। त्रेय उनके पिता महान त्रषि अत्रि थे। 

ब्रहमा, विष्णु और महेश ने मिलकर माता अनसुया और त्रषि अत्रि को यह पुत्र दिया था। इसलिए नाम मिला दत्तात्रेय। दरअसल, ये तीनों देवों का रूप है। बाबा को दत्तात्रेय का चौथा अवतार इसलिए माना जाता है, क्योंकि उन्होंने समय-समय पर अपने भक्तों को ब्रहमा, विष्णु और महेश तीनों रूपों में लोगों को दर्शन दिए हैं। कहा तो यह भी जाता है कि श्यामा को बाबा ने स्वयं दत्तात्रेय महाराज के रूप में दर्शन दिए थे। 

दत्तात्रेय भगवान को योगिक क्रियाओं में महारत हासिल थी। अब तक विश्व में योग सामथ्र्य के लिए भगवान दत्तात्रेय का नाम ही सबसे ऊपर आता है। यहां तक कि उनके योग सामथ्र्य से वशीभूत वालों ने उन्हें हमेशा घेरे रखने का प्रयास भी शुरू कर दिया था। और वह लोगों की भीड़ से पेरशान रहते थे। एक बार उन्होंने सरोवर के अंदर जाकर तीन दिन की समाधि ले ली थी। बाबा ने भी एक बार ठीक ऐसा ही किया था। 

खैर जब दत्तात्रेय सरोवर से बाहर आए, तो उन्होंने देखा कि, बाहर भीड़ यथावत वही जमी थी। दत्तात्रेय फिर से सरोवर में गए और इस बार वे अंदर से सुरा और सुंदरी लेकर वापस आए। जैसा कि उन्होंने सोचा था, वही हुआ। लोगों ने कहा, अरे यह तो भ्रष्ट हो गया है? देखते ही देखते लोग उन्हें छोड़कर चले गए। भगवान दत्तात्रेय को सुकून मिला। इसके बाद वे पूर्ण रूप से दिंगबर होकर जंगल-जंगल विचरण करने लगे और लोगों के दु:ख दूर करते। ऐसा ही आचरण साई का रहा। इसलिए उन्हें दत्तात्रेय का चौथ अवतार कहा जाता है। 

यह भी एक कहानी...
नाना साहब चांदोरकर का नियम था। वह जब शिर्डी आने के लिए कोपर गांव स्टेशन पर उतरते, तो भगवान दत्तात्रेय के मंदिर में माथा टेंकना न भूलते। एक बार वह लहूलुहान होकर शिर्डी पहुंचे। कपड़े फटे हुए, पांवों में कांटे। नाना साहब ने देखा कि, वे बुरी हालत के बावजूद बाबा के दर्शन करने आए, लेकिन बाबा हैं कि, उनसे बात ही नहीं कर रहे। नाना साहब ने दु:खी होकर पूछा, ऐसा क्यूं कर रहे हो बाबा? बाबा ने जवाब दिया, जब तुम में सामथ्र्य नहीं है वादा निभाने की, तो तुम वादा करते क्यूं हो? क्या जरूरत थी तुम्हें कि तुम दत्तात्रेय के दर्शन किए बिना यहां आ गए?

दरअसल, नाना साहब ने दत्तात्रेय मंदिर के पुजारी से वादा किया था कि जब भी वे अगली बार आएंगे, तो 300 रुपए मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए देकर जाएंगे। लेकिन इस बार विधि का विधान ऐसा हुआ कि, नाना साहब इतने पैसे इकठ्ठा नहीं कर पाए, किन्हीं कारणों से। अब उन्हें लगा कि मैं क्या मुंह लेकर उस पुजारी के सामने जाएंगे। सो वह छिपते-छिपाते कंटीली झाडिय़ों में गिरते-पड़ते सीधे शिर्डी पहुंचे। नाना साहब को अपनी भूल का अहसास हो गया था।

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