Friday 18 March 2016

साई सत्यव्रत पूजा



शिर्डी में साई सत्यव्रत पूजा प्रत्येक दिन पूर्ण विधि-विधान से की जाती है. श्री साई अमृत कथा में ‘भाईजी’ शिर्डी में प्रतिदिन होने वाली साई सत्यव्रत पूजा के बारे में उल्लेख करते हुए बताते हैं कि पुणे ज़िले के जुन्नर तालुका में नारायणगाँव के निवासी भीमाजी पाटिल को इस पूजा को प्रारम्भ करने की प्रेरणा बाबा द्वारा दी गयी.

सत्यनारायण व्रत कथा की प्रासंगिकता
भारतवर्ष के कई सारे प्रान्तों में प्रत्येक पूरनमासी को अथवा किसी शुभ कार्य को करने के पहले या कुछ मिलने के बाद धन्यवाद स्वरुप सत्यनारायण व्रत कथा करने की प्रथा कई वर्षों से प्रचलित है. इस दिन केले के पत्तों से सजे मंडप में चौकी पर सुपारी रूप में गणपति, चावल की ढेरियों से षोडश-मात्रिकाएं, गेंहू की ढेरियों से बने नवग्रह, पीतल की बालगोपाल की प्रतिमा और सत्यनारायण भगवान् की छबि के रूप में विष्णु को स्थापित कर परिवार और मित्रों के साथ विधि-विधान से पूजा की जाती है. पांच-अध्यायी कथा का वाचन कर आरती से इसकी पूर्णाहूति की जाती है. पूजा से पहले उपवास रखा जाता है और रात-भर सत्संग, इत्यादि का कार्यक्रम रखा जाता है.
हमारे देश में सामाजिक दृष्टि से इस पूजा का बहुत अधिक महत्त्व है. कम से कम कर्मकाण्ड में धार्मिक संस्कारों का पुनःस्मरण कराने के लिए इससे और सरल कोई उपाय भारतीय संस्कृति में नहीं सामने आता. इस कथा में वो सभी कुछ समाया हुआ है जो हमें सरल जीवन जीने के उपाय बताता है. सत्य की राह पर चलते-चलते अपने अन्दर के उस सत्य को जागृत करना इस पूजा का मुख्य उद्देश्य है जो हमें मालूम तो होता है लेकिन जानबूझकर हम उसे भूलना पसंद करते हैं. सत्य के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी अपेक्षा हम सभी को हमेशा दूसरों से ही होती है. हम इसका पालन करने में झिझकते हैं. भारतीय दर्शन कितना प्राचीन, सभ्य, वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए, व्यावहारिक और परिपूर्ण है, इसका ज्ञान इस पूजा से मिलता है. इस पूजा का आविष्कार करने वाले को साधुवाद!
इस पूजा और साई बाबा के जीवन चरित्र में कई समानताए है.

धरती की पूजा
सबसे पहले इसमें धरती की पूजा जो सारे उद्यम का मूल है, हमें अपने जड़ों का सम्मान करने के बारे में बताती है. यह बताती है कि जिस माँ की कोख से हम जन्मे हैं और जिस पिता का कुल हमें मिला है, वह हमारे सारे संस्कारों का मूल है. सबसे पहले उसका सम्मान किया जाना ज़रूरी है. माँ की कोख से मिली स्वभाव में सरलता इस भाव को दृढ़ करती है तो पिता से मिले संस्कार इसे बल देते हैं. इस क्रिया के पीछे यही भाव है कि अगर अपनी सम्मानपूर्वक अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे तो हमारे सारे उद्यम सफ़ल होंगे. साई बाबा के माता-पिता के बारे में हमेशा अटकलें लगती रहीं. कई तो मानते हैं वे अयोनिज थे यानि उनका प्राकट्य किसी योनी से नहीं हुआ था और यह कि वे स्वयंभू थे. तथ्य कुछ भी हो, साई ने सदा ही सरलता से ही जीवन जिया. कोई दिखावा तो उन्होंने कभी किया ही नहीं. यह उनकी माँ की कोख की पहचान रही. सदा ही बाबा ने संस्कारवान जीवन जिया यह इस बात को दर्शाता है कि साई कुलीन परिवार से ताल्लुक रखते थे. अपने भक्तों को भी वे सदा ही सरलता भरा जीवन जीने को कहते. दिखावा उन्हें लेशमात्र भी पसंद नहीं था.

गणपति पूजन   
विघ्नविनाशक गणेश की सुपारी रूप में पूजा बताती है कि इस दुनिया की हर जड़ और चेतन वस्तु में भगवान् का वास होता है और इसीलिए हर चीज़ का पूरा आदर किया जाना चाहिए. यह पूजा उनके स्वरुप की पूजा है जिसमें उनका बड़ा पेट हमें अपनी बातें अपने ही तक रखने की सीख देता है. उनके बड़े कान और छोटा मुख बताता है कि हम कम बोले और ज़्यादा सुने. उनकी लंबी सूंड हमें खोजी बनने की तरफ प्रेरित करती है. उनका बड़ा मस्तक हमें स्वाभिमान में जीने की कला देता है. माता-पिता के सम्मान का गुण तो गणेश में सदा ही विद्यमान रहा है. साई बाबा में भी कम बोलने और ज़्यादा सुनने के गुण रहे. किसी के भी तीनों कालों को वे लगातार पढ़ते रहते. अपनी बातें अपने तक ही रखने की सीख स्वाभिमान से रहते बाबा से सदा ही मिलती रहती. वे तो कहते ही रहते, “जिन्ने पानी, उन्ने छुपानी.” इसका मतलब जो भी पाया है वह उपरवाले की कृपा से पाया है, उसका व्यर्थ प्रदर्शन ठीक नहीं.

षोडशमात्रिका पूजन
षोडशमात्रिकाओं का पूजन स्त्री-सम्मान का प्रतीक है. यह क्रिया स्त्री के विभिन्न रूपों, माँ, बहन, पत्नी, बेटी, का आदर करने के बारे में बताती हैं. साई ने तो सदा ही महिलाओं के प्रति आदर का भाव रखा. अपने संपर्क में या समक्ष आने वाली किसी भी महिला के प्रति उथले भाव कभी भी नहीं रखे. बायज़ामाई, लक्ष्मीबाई शिंदे, चन्द्राबाई बोरकर, श्रीमती गोखले, श्रीमती खापर्डे, श्रीमती औरंगाबादकर, राधाबाई देशमुख, श्रीमती तर्खड, श्रीमती तेन्दुलकर, मौशीबाई या फिर राधाकृष्णमाई हों या फिर भक्तों की टोलियों में आने वाली अन्य महिलाऐं, बाबा सदा ही सबके आई या माई ही कहते और उनके आदर के प्रति सभी को आगाह करते रहते.

नवग्रह पूजन  
नवग्रह का पूजन हमें अपने इतिहास और खगोलशास्त्र में गर्व महसूस कराता है कि सबसे पहले, कई वर्षों पूर्व, भारत में ही ग्रहों के बारे में इतनी सटीक खोज हुई थी. ग्रहों के स्वभाव के बारे में जानकर हम उनके बारे में एकदम ठीक वैज्ञानिक आकलन कर सकते हैं. ग्रहों का सम्मान हमें समाज और जीवन में यश और मान दिलवाता है. यह क्रिया उसी मान को पाने की दिशा में एक प्रयास मानी जा सकती है. बाबा भी अपने भक्तों को सदा ही सभी जीवों में ईश्वर के दर्शन करने को उत्प्रेरित करते रहते. सभी जीवों में ईश्वर तत्त्व के दर्शन करते रहने से और उनके प्रति दया भाव रखने से, उनकी सेवा करने से सदा ही बिगड़े हुए ग्रहों की चाल सुधर जाती है. श्री साई सच्चरित्र में ऐसे ही कई उदाहरण आते हैं जहाँ साई के कहने पर कुत्ते को या किसी अन्य जीव को भोजन कराने से साई बाबा के भक्तों की बिगड़ी तबियत और वित्तीय स्थिति में सुधार आया.

अतिथि सत्कार
बालगोपाल की प्रतिमा का स्नान, वस्त्रार्चन, श्रृंगार, यज्ञोपवीत संस्कार, रक्षा-सूत्र बंधन, नैवेद्य अर्पण, जल से आचमन और पान-बीड़ा अर्पण हमें इस बात का ज्ञान देता है कि अतिथियों को कैसे मान देना चाहिए. उनकी छोटी से छोटी ज़रुरत का ध्यान रखना हमारा कर्त्तव्य है. अतिथि देवो भवः एक परिपूर्ण भारतीय सूत्र है जिसका सम्पूर्ण विश्व में कोई समकक्ष नहीं है. अपने भक्तों के ठहरने और भोजन की सम्पूर्ण व्यवस्था करने के लिए बाबा ने पहले श्रीमान साठे और बाद में काकासाहेब दीक्षित को शिर्डी में वाड़ा बनवाने के लिए प्रेरित किया. कई सालों तक तो बाबा अपने हाथों से बड़े ही चाव से भक्तों के लिए भोजन तैयार करते और प्यार से परोसते. उन्हें प्यार से भाल पर अपनी चमत्कारी उदी भी लगाते. भक्त तो बाबा के लिए अतिथि के रूप में भगवान् थे. बाबा अपने भक्तों में भी ईश्वर के दर्शन करते.

प्रथम अध्याय: परोपकार से संतत्व
फिर जब मुख्य कथा प्रारम्भ होती है तो पहले अध्याय में उल्लेखित ऋषियों की मानव जाति के उत्थान के प्रति चिंता दर्शाती है कि महापुरुष हमेशा दूसरों के ही हित के लिए ही चिंतित रहते हैं और जो परमार्थ के बारे में सोचते हैं वे अमर हो जाते हैं और सैकड़ों साल बाद याद किये जाते हैं. नारद का संत स्वरुप दर्शाता है कि संत सीधे ईश्वरत्व से संपर्क में रहते हैं और मानवोत्थान के सूत्र देते हैं. साई तो स्वयं ऋषि भी थे और संत भी. वे अपने आश्रितों की भलाई के लिए सदैव ही चिंतित रहते और साथ ही स्वयं भक्ति के सूत्र और उपाय बताते रहते.

द्वितीय अध्याय: धन से धन कमाओ
दूसरे अध्याय में उस ब्राह्मण के बारे में उल्लेख है जो निर्धन तो था लेकिन जब उसने लकड़ियाँ बेचने का पराक्रम धर्म करने के उद्देश्य से किया तो परमात्मा ने उसकी मंशा जान उसे कर्म के बदले धर्म धन के रास्ते उपलब्ध कराया. सीख मिलती है कि मेहनत का कोई स्थानापन्न नहीं हो सकता. सही नीति और मंशा से की गई मेहनत से इंसान अपना प्रारब्ध ख़ुद गढ़ सकता है. यह भी सीखने को मिलता है कि जब इंसान नीति से कमाए हुए धन से धर्मोपार्जन करना चाहता है तो ईश्वर सदा सहायता करते हैं. सारे रास्ते खुल जाते हैं और अवरोध हट जाते हैं. नीयत से ही नियति का निर्माण होता है यह इस कथा से समझ में आता है. साई बाबा ने भी सदा लोगों को सही दिशा में ही कर्म करने की प्रेरणा दी. शिर्डी के एक आलसी से ख़ज़ाने की लालच में खेत जुतवा दिया और फिर उसमे खेती करवा दी. धन दिया, धर्म दिया, मान दिया. दामू कासार जैसे लोगों से व्यापार में सट्टे की प्रवृत्ति छुड़वाई. धनाढ्यों से परोपकार के काम करवाए. धार्मिक स्थानों का जीर्णोद्धार भी करवाया. नीयत में खोट को प्यार से ठीक किया.

तीसरा व चौथा अध्याय: व्यापार और परिवार में नेक नीयत  
तीसरे और चौथे अध्याय में व्यापारी की कथा आती है. दो अध्याय में फैली हुई ये कथा यह बताती है कि बनिए अथवा स्वयं का व्यवसाय करने वाले को कैसा आचरण करना चाहिए. सबसे ज़रूरी बात तो यह है कि ईश्वर किसी भी साधारण मनुष्य अथवा सन्यासी या किसी भी अन्य रूप में सामने आ सकता है. किसी से भी झूठ बोलकर अपने किये हुए वादे से मुकरना नहीं चाहिए. ऐसी ही सीख साई बाबा ने नानासाहेब चांदोरकर को भी दी थी जब वो कोपरगाँव के दत्त मंदिर के पुजारी से तीन सौ रुपये देने का वादा पूरा करने में असमर्थ थे तो छुपते-छुपाते शिर्डी पहुंचे पर रास्ते में काटों से लहुलुहान हो गए थे. बाबा ने कुछ देर उनसे बात न कर उनको उनकी गलती का अहसास कराया.
किसी अन्य का अनीति से धन कमाया धन सज़ा भी दिलवा सकता है जैसी कि उसको बनिए को और उसके जंवाई को हुई थी जब चोर उनके पास चुराया हुआ धन फ़ेंक कर चले गए थे. किसी और के धन पर हमारा अधिकार नहीं होता है. ऐसा ही किस्सा श्री साई सच्चरित्र में मद्रासी भजन मंडली के लालची प्रमुख के सपने का आता है जिसमें वो अपनी लालच के चलते जेल में खड़ा है और बाबा उसे उसकी गलतियों का अहसास करा रहे हैं.  
इन दोनों अध्यायों में यह भी समझ आता है कि पत्नी से बेहतर आपका कोई शुभचिंतक नहीं होता और उसकी बात को लगातार अनदेखा करना भगवान् को भी नागवार गुजरता है. अपने शुभचिंतक की बात को लगातार अनदेखा करने पर तकलीफ़ आती ही है. इसमें पत्नी के लिए भी व्यावहारिक सन्देश है कि पति के प्रेम में किसी का अनादर नहीं करना चाहिए. कलावती पति से मिलने को आतुर भगवान् का प्रसाद लिए बिना ही उठ भागी थी और कुछ देर के लिए ही सही अपना पति खो बैठी थी. श्री साई सच्चरित्र में औरंगाबादकर दंपत्ति, तेन्दुलकर दंपत्ति, तर्खड दंपत्ति, काकासाहेब दीक्षित और उनकी पत्नि, बायज़ामाई और उनके पति, खापर्डे दंपत्ति, आदि ऐसे कई दम्पत्तियों का ज़िक्र आता है जो सफ़ल दांपत्य की मिसाल बन कर सामने आते है.

पाँचवा अध्याय: राजधर्म का पालन और भोजन का सम्मान        
अंतिम अध्याय में उस क्षत्रिय की कहानी आती है जिसमें एक राजा शिकार पर निकलता है और जब उसे थकी हालत में देखकर उसकी प्रजा के लेकिन नीच जाति के लोग उसे प्रसाद के रूप में अन्न भेंट करते हैं तो वह उसकी अवज्ञा करता है. इसके फलस्वरूप उसे मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. सीख मिलती है कि जब भी कोई प्रेम से भोजन भेंट करे तो उसे अपना सम्मान समझो. उसका अनादर नहीं करना चाहिए. यही सीख बाबा ने भी श्री साई सच्चरित्र में अपने तीन अन्य दोस्तों की कहानी में दी है जिसमें वो लोग रास्ता भूल जाते हैं और भील द्वारा भोजन की पेशकश ठुकरा देते हैं. वो वन में ही भटकते रहते हैं और उन्हें रास्त तब ही मिलता है जब वे उस भील द्वारा अर्पित भोजन ग्रहण कर लेते हैं. भूखे पेट कहीं रास्ता मिलता है क्या!
इस अंतिम अध्याय की कथा का मर्म समझाते हुए भाईजी बताते हैं कि अपने से नीची जाति वालों को कमतर समझना ईश्वर की कृति का अपमान होता है. सभी को बराबर का दर्जा दो. यदि नहीं दे सकते हो तो उनका अपमान तो मत करो. यही सीख बाबा ने अपनी तमाम उम्र लोगों को दी कि अपने बीच से तेली की दीवार हटा दो.

कहानी भीमाजी पाटिल की  
शिर्डी में साई सत्यव्रत पूजा की बात आगे बढ़ाते हुए भाईजी बताते हैं कि भीमाजी पाटिल को क्षय रोग हो गया था और उन्हें लगभग हर पाँचवे मिनिट पर खून की उल्टियाँ हुआ करती थी. कई इलाज करवाए गए लेकिन थक-हार कर जब बाबा के परम भक्त नानासाहेब चांदोरकर से सलाह ली तो उन्होंने भीमाजी को तुरंत साई बाबा के श्रीचरणों में ले जाने को कहा.
श्री साई सच्चरित्र के अध्याय 13 में आता है कि जब भीमाजी को बाबा के पास लाया गया तो बाबा ने उनकी हालत देखकर दो-टूक कह दिया कि यह भीमाजी के पूर्व जन्मों का फल है और इसे तो उन्हें काटना ही पड़ेगा. इस पर भीमाजी ने अत्यंत दयनीय भाव से बाबा से याचना करते हुए कहा कि उन्हें इस पीड़ा से बचा लें और अब उन्हें केवल बाबा का ही सहारा है. उनकी गुहार पर बाबा पसीज गए और बाबा की दया दृष्टि पड़ते ही उन्हें खून की उल्टियाँ होना बंद हो गयीं. बाबा ने उन्हें भीमाबाई के घर रहने भेज दिया जो कि किसी भी दृष्टि से उनके रहने लायक तो न था लेकिन बाबा के आदेश का कौन टाल सकता था. बाबा की तो रीत ही निराली थी. हो सकता है कि भीमाबाई के यहाँ रहने भेज कर बाबा भीमाजी पाटिल के अहंकार का इलाज कर रहे हों या ऐसा कर के उनके पूर्व जन्म के कर्मों के प्रभाव को बाबा कम कर रहे हों. बाबा की बातें बाबा ही जाने!
एक रात भीमाजी ने सपना देखा कि वो एक कक्षा में बैठे हैं और कविता याद न कर पाने पर उन्हें बेंत से मार कर स्कूल मास्टर सज़ा दे रहे हैं. सपने में ही उन्हें खूब दर्द का अहसास हुआ. कुछ समय बाद फिर रात को उन्हें एक सपना आया जिसमें कोई उनकी छाती पर एक भारी पत्थर रख कर ज़ोर-ज़ोर से घुमा रहा था और दर्द के मारे उनकी जान निकली जा रही थी. कराहते हुए उनकी नींद खुली तो उन्होंने पाया कि उनका रोग जाता रहा और उनकी तबियत बिलकुल ठीक हो गयी थी. यह बाबा की बिलकुल अनूठी रीत थी भीमाजी के कर्मों को शांत करने की. कर्मों के फल सपनों में महसूस किये दर्द के माध्यम से शांत हो गए. भक्तों को ऐसी प्रीति सिर्फ़ साई के चरणों में समर्पित हो कर ही मिलती है.
भीमाजी जब ठीक होकर अपने गाँव पहुंचे तब उन्होंने साई की इस प्रीति को अमर बनाने के उद्देश्य से अपने गांव में साई सत्यव्रत पूजा प्रारम्भ की. इसमें सत्यनारायण भगवान् के साथ साई बाबा की मूर्ति भी पूजी जाती है. आज भी यह पूजा शिर्डी में प्रतिदिन तीन पालियों में सत्यनारायण पूजा दालान में प्रतिदिन संपन कराई जाती है.
साई में ही सत्यनारायण बसते हैं क्योंकि साई सत्य हैं, नित्य हैं और सद्गुरू बन सत्य की राह पर हम सबको लिये चलते हैं. साई में ही सत्य के दर्शन करने से आध्यात्मिक उन्नति गति पकड़ लेती है और अपने भाव सुधरने का भास होता है. भाव से ही विचार और विचारों से कर्म सुधारते हैं. बाबा सत्यनारायण के रूप में भी हमारा हाथ पकड़ कर हमारे साथ हमें सत्य की राह पर लिए चलते हैं.                       
      
   बाबा भली कर रहे।।

श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तुशुभं भवतु

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